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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 397 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि व्यवहार-परमार्थ अखिल लोक में संस्कारों के विधिविधान (व्यवहार) का महत्त्व इस प्रकार बताया गया है। संस्कार किस कारण से किए जाते हैं और उनके करने से क्या लाभ होते हैं, उसे बताते हैं। यदि आचारादि क्रियायोग से मनुष्य को कोई विशेष रूप, सौन्दर्य, प्रतिभा, कीर्ति एवं तेजस्विता प्राप्त नहीं होती है, तो फिर इन क्रियाओं को करने का क्या प्रयोजन है। जिस प्रकार अग्नि जलाने तथा पचाने में सक्षम होती है, उसी प्रकार मंत्रों के संस्कार के बिना भी मनुष्य कार्य करने में समर्थ होता है। दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार इंधन आदि से पुष्ट अग्नि जलाने में सक्षम है, उसी प्रकार आहारादि से पुष्ट व्यक्ति की देह भी कार्य करने में सक्षम होती है। इस प्रकार यदि संस्कार करने का कोई प्रयोजन प्रतीत नहीं होता है, तो फिर संस्कार सम्बन्धी विधि-विधान हेतु व्यर्थ में वित्त का व्यय करने से क्या लाभ ? पुराणों में विहित ये क्रियाएँ व्यर्थ हैं। उत्तमता से अनुष्ठित ये संस्कार सम्बन्धी क्रियाएँ किस प्रकार हमें संसार-समुद्र से पार उतार सकती हैं, इसके प्रत्युत्तर में ग्रन्थकार कहते हैं कि इहलौकिक एवं पारलौकिक कर्मों की फलश्रुति के सम्बन्ध में विद्वज्जनों एवं केवलियों के वचन ही सम्यक् रूप से ग्राह्य प्रमाण हैं। स्याद्वादप्रधान आर्हत्मत को उत्तम कहा गया है। उसके अनेकान्त शब्द से सर्वसामान्य का त्याग होता है। केवली द्वारा निर्दिष्ट आचार ही परमार्थ है तथा सज्जन पुरुषों द्वारा अनुमत वेश एवं आचार व्यवहार कहा जाता है। यह सर्वसम्मत है कि पापकों का क्षय होने से, पुण्यकर्म का संचय होने से; दान, तप, ब्रह्मचर्य एवं करुणा की शुभ-भावना उत्पन्न होती है। आचार और वेश - ये दोनों कल्याणकारी बताए गए हैं। इनसे सम्बन्धित जो क्रियाएँ हैं, वे भी किस प्रकार कल्याणकारी हैं, इसे बताते हुए कहते हैं - ___गर्भाधान-संस्कार - गर्भाधान में जो कर्म किया जाता है, वह गर्भ की प्रसिद्धि करता है, स्वकुल के लोगों को आनंद प्रदान करता है। शान्तिककर्म गर्भ का रक्षण करता है। जो मंत्र प्रयोग हैं, वे भ्रूण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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