________________
आचारदिनकर (खण्ड-४)
395 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि रूप, गण, मेरु, वर, जयन्त, योग, तारा, कला, पृथ्वी, हरि, प्रिय, इत्यादि नाम के पूर्वपद कहे गए हैं।
शशांक, कुम्भ, शैल, अब्धि, कुमार, प्रभ, वल्लभ, सिंह, कुंजर (गज), देव, दत्त, कीर्ति, प्रिय, प्रवरा, आनन्द, निधि, राज, सुन्दर, शेखर, वर्द्धन, आकर, हंस, रत्न, मेरु, मूर्ति, सार, भूषण, धर्म, केतु, पुंगव, पुण्ड्रक, ज्ञान, दर्शन, वीर - ये साधुओं के नाम के उत्तरपद बताए गए हैं।
पूर्वपद एवं उत्तरपद के संयोजन से साधुओं के नाम बनते हैं और अन्य जो सहज नाम हैं, वे भी इस प्रकार ही जानने चाहिए। व्रत प्रदान करते समय गुरु पुरुषों को उन उत्तम पदों से युक्त नाम दे - इस प्रकार साधुओं के नाम बताए गए हैं। सूरिपद को प्राप्त करने पर भी ये नाम इसी प्रकार रहते हैं, कुछ गच्छों में नामों में परिवर्तन नहीं किया जाता, अर्थात् सूरिपद से पूर्व एवं पश्चात् का नाम एक जैसा ही रहता है। उपाध्याय एवं वाचनाचार्य के नाम भी साधु के समान ही होते हैं। साध्वियों के नाम के पूर्वपद यतियों (साधुओं) के समान ही होते हैं। इनके नाम के उत्तरपद इस प्रकार बताए गए हैं, यथा-मति, चूला, प्रभा, देवी, लब्धि, सिद्धि, वती। प्रवर्तिनियों के नाम भी इसी प्रकार से बताए गए हैं। महत्तराओं के नामों में भी पूर्वपद उसी प्रकार होते हैं। साध्वियों के अतिरिक्त अन्य किसी के नाम के उत्तरपद में श्री नहीं लगता। मुनियों के बताए गए सभी उत्तरपदों में 'आ'कार तथा अन्त में श्री लगाने से साध्वियों के नाम बनते हैं। कुछ लोग महत्तरा के नाम के अन्त में विशेष रूप से नन्दि, सेना आदि लगाते हैं। इसी प्रकार जिनकल्पियों के नाम भी साधुओं के समान ही होते हैं।
विद्वान् विप्रों के नाम बुद्ध, अर्हत्, विष्णु आदि परमात्मा के नामों के आधार पर दिए जाते हैं। बुद्धिमानों के नाम गणेश, कार्तिकेय, अर्क, चन्द्र, शंकर आदि शब्दों के आधार पर रखे जाते हैं। योगियों के नाम विद्याधर, समुद्र, कल्प, वृक्ष, जय आदि होते हैं। इस प्रकार उत्तमजनों के नाम रखने चाहिए। ब्रह्मचारी एवं क्षुल्लकों के
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org