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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 385 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि लिए वस्त्र, टोकरी, मेरु, रथ, जल का कुण्ड, कलश, पूजा करने वाले लोग, नैवेद्य के पात्र, चतुष्किका (चौकियाँ), रात्रि के लिए ऊँचे-ऊँचे दीपक, उसके लिए बैलगाड़ी, छोटे-छोटे दीपक, सभी प्रकार के मनोहर वाद्य, वाद्यों को बजाने वाले (वादकजन), अर्हन्त के भजनों के गायक, महाध्वजा, सद्गुरुओं के लिए कुश (घास) का संथारा, द्वारपाल, कपड़े के मण्डप (तम्बू), नाना प्रकार के श्वेत आवासगृह, प्रयाण के समय विपुल वैभव से संघपूजा, परमात्मा की पूजा, बन्दीजनों की मुक्ति, सुयोग्य साधु, प्रचुर मात्रा में भोज्यसामग्री से भरी हुई गाड़ियाँ, विशाल मण्डप, माण्डलिक, द्वारपाल, पार्षिण धरा (पीछे चलने वाली सेना की टुकड़ी), भाट-चारण, मौन रहने वाले मुनियों के लिए पट-मण्डप (तम्बू, सभी प्रकार के कारूजन, कुदाली, तांबे का महाचरू, कढ़ाही, सुयोग्य रसोइया, क्रियाणक बेचने वाले सौदागर, पानी की प्याऊ, अश्व के लिए आवश्यक वस्तुएँ, वैद्य, प्रचुर मात्रा में बन्दीजन (स्तुति करने वाले), सुखासन से युक्त मनुष्यों के निवास के लिए वस्त्र एवं विभिन्न प्रकार की वस्तुओं से निर्मित आवासगृह, भोजन के लिए बर्तन, सूखी सब्जियाँ एवं विशेष रूप से ताम्बूल, मार्ग में ठहरने के लिए जल, वृक्ष, अग्नि के ईंधन आदि की उपलब्धि देखकर भूमि पर निवास करे। धूप आदि के निवारण के लिए मयूरपिच्छ, मार्ग में जहाँ भी चैत्य आए वहाँ सम्यक् प्रकार से दर्शन करना, महापूजा, ध्वजारोपण एवं ऋद्धिपूर्वक संघपूजा करे तथा संघ में रहे हुए मुनियों का साथ करते हुए चले - इस प्रकार नगरों में, ग्रामों में जो-जो जिनालय हैं, उन-उन जिनालयों में ध्वजारोपण एवं महापूजा करवाए - उपर्युक्त सभी संघपति के संग्रह-योग्य आवश्यक सामग्री है। तत्पश्चात् संघपति संकल्पित (लक्षित) तीर्थ पर पहुँचकर तीर्थ के दर्शनमात्र से महोत्सव एवं महादान करे। तत्पश्चात् संघपति समस्त संघसहित गृहस्थ गुरु एवं साधुओं को आगे करे तथा महामूल्यवान रत्न, स्वर्णमुद्रा एवं फलरूप भेंट अपने हाथों से अरिहंत परमात्मा के आगे चढ़ा कर दण्डवत् प्रणाम करे। शक्रस्तव के पाठ से तीर्थ की वन्दना करे। तत्पश्चात् बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक परमात्मा की स्नात्रपूजा एवं महापूजा करे। चैत्य-परिपाटी, जिनमूर्ति पर बहुमूल्य आभरण चढ़ाए, प्राचीन तीर्थों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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