SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 426
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४) 382 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि इन सभी कर्माधिकारियों का पदारोपण नृप के आदेश से उनको तलवार, दण्ड, अंकुश, चाबुक आदि प्रदान करने, वीरतापूर्वक मुष्टि बाँधने या आदेशात्मक वचनमात्र से ही हो जाता है । इन सभी कर्माधिकारियों को अनुशासित करने की विधि इस प्रकार है स्वामी ने तुम्हें जिस कार्य हेतु नियुक्त किया है, तुम उसे विश्वासपूर्वक करना, अपना कार्य करने में कभी भी प्रमाद मत करना तथा स्वामी को जो इच्छित हो, वही कार्य करना । कभी भी प्रजा को पीड़ित मत करना, सद्कार्य करना, न्यायपूर्वक धन का उपार्जन करना, उत्तम पुरुषों की कभी भी उपेक्षा मत करना, प्रजाधन एवं राजा के धन की कभी भी आकांक्षा मत करना । सदैव सभी कर्माधिकारियों को इसी प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाए। पदारोपणाधिकार में कर्माधिकारी पदारोपण की यह विधि बताई गई है। - वैश्य एवं शूद्रों को मंत्री, सेनापति, कर्माधिकारी का पद राजा की कृपा से ही प्राप्त होता है । उनके पदारोपण की विधि भी पूर्व में कहे गए अनुसार ही है, किन्तु इनमें श्रेष्ठि, सार्थवाह एवं गृहपति ये तीन पद पूर्वापेक्षा अधिक होते हैं। श्रेष्ठि श्रेष्ठि सर्व वणिक् वर्ग में श्रेष्ठ होते हैं, नृप द्वारा सम्मानित होते हैं तथा कार्य करने वाले होते हैं । सार्थवाह - सर्व देश के भूपतियों द्वारा मान्य होता है, विविध प्रकार के व्यापार करने वाला तथा सार्थों का स्वामी होता है । गृहपति यह राजा के द्रव्य के देखभाल का कार्य करता है तथा उनका विश्वासपात्र होता है । इन सबका पदारोपण नृप के आदेश से होता है तथा इनको दी जाने वाली शिक्षा कर्माधिकारियों की शिक्षा के सदृश ही है । पदारोपण - अधिकार में वैश्य एवं शूद्रों के पदारोपण की यह विधि बताई गई है। महाशूद्र आभीर का पदारोपण ग्रामाध्यक्ष के रूप में होता है और उसका पदारोपण भी नृप के आदेश से ही होता है तथा उसे दी जाने वाली शिक्षा पूर्व में ग्रामाधिपति पदारोपण की विधि के अनुसार ही है। कारूओं का पदारोपण स्व-स्वजाति के मुखिया के रूप में होता है और उनका पदारोपण राजा द्वारा वस्त्रादि तथा उनके शिल्प से सम्बन्धित सोने-चाँदी के उपकरणों के प्रदान करने से होता है । उनको For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy