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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 375 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि । वालों को, चोर को, प्राण का वियोजन करने वाले को, अर्थात् किसी का वध करने वाले को दृढ़ात्मन् होकर दण्ड देना चाहिए। दुष्टों को दण्ड देना, स्वजनों का सत्कार करना तथा न्यायपूर्वक राज्यकोष की अभिवृद्धि करना, पक्षपात से रहित होकर राज्य की रक्षा करना तथा नृपों द्वारा करणीय जो पाँच प्रकार के यज्ञ बताए गए हैं, उन्हें करवाना चाहिए। - इस प्रकार की राज्योचित शिक्षा देकर राजा को पट्टाश्व, पट्टहस्ति तथा पट्टरथ प्रदान करे। पट्ट-अश्वादि की अभिषेक विधि पूर्व में कहे गए अनुसार ही है। तत्पश्चात् गुरु नृप को दिग्विजयादि कर्म करने की अनुज्ञा प्रदान करे। राजा के योग्य चिह्न इस प्रकार हैं - श्वेतछत्र, श्वेतचामर, रक्तमण्डप (स्थूलादि), लाल रंग के रेशमी वस्त्र से आवृत्त शय्या, सोने का कड़ा, नृपासन, पादपीठ, श्वेतजीन, तरकस, विजय का सूचक इन्द्रध्वज एवं बुक्कवाद्य (बुगुल) दूसरों के द्वारा जय-जयकार की ध्वनि, सोने-चाँदी की मुद्राएँ - ये सब राजा के चिन्ह हैं। जो राजसूर्य यज्ञ करके सम्पूर्ण पृथ्वी पर विजय प्राप्त करता है तथा अन्य राजाओं पर शासन करता है, वह चक्रवर्ती सम्राट होता है। चक्रवर्ती के राज्याभिषेक की विधि भी राजा के समान है। शेष युद्धादि द्वारा दिग्विजय करने की सम्पूर्ण विधि नीतिशास्त्र से जानें। यह आचारशास्त्र का ग्रन्थ है। अन्य कथा-पंथों, अर्थात् अन्य चर्चा द्वारा इसके विस्तार का भय है। अतः पदारोपण-अधिकार के क्षत्रिय-पदारोपण-प्रकरण में नृप-पदारोपण की यह विधि सम्पूर्ण होती राज्ञी (रानी)-पदारोपण-विधि - भद्रासन पर बैठाकर तिलक करके एवं चामर ढुलवाकर रानी की पदारोपण की विधि की जाती है। उनको दी जाने वाली हितशिक्षा इस प्रकार है - हे वत्स ! तुम तीनों कुल की कीर्ति को फैलाना, ईश्वर की भक्ति के समान ही अपने स्वजनों एवं पति की भी भक्ति करना, सुरेन्द्र-पद का लाभ होने पर तथा प्राणनाश होने पर भी स्त्री के पतिव्रता होने के नियम से च्युत होकर अपतिव्रता मत होना, स्वबन्धु, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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