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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 362 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि चालीसवाँ उदय पदारोपण की विधि अब पदारोपण की विधि बताते हैं और वह इस प्रकार है - तप एवं पुण्यकर्म के प्रभाव से व्यक्ति इहलोक और परलोक में स्वोचित पद को प्राप्त करते हैं। यहाँ सर्वप्रथम साधुओं के गच्छनायक-पदारोपण की विधि बताई गई है। तत्पश्चात् क्रम से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, महाशूद्र, कारू एवं पशुओं की पदारोपणविधि बताई जाएगी। गच्छनायक के पदारोपण की विधि - जो विशुद्ध कुल, जाति एवं चारित्र वाला हो, विधिपूर्वक जिसने चारित्र को ग्रहण किया हो, योगों का उद्वहन किया हो, आचार्य के छत्तीस गुणों से युक्त हो तथा विधिक्रम से जिसने आचार्य-पद को प्राप्त किया हो, ऐसे आचार्य को गच्छनायक पद पर आरोपित करने की विधि बताई गई है, जो इस प्रकार है - पूर्व गुरु (आचार्य), अथवा पूर्व गुरु के परलोक चले जाने पर, उपर्युक्त ३६ गुणों से युक्त अन्य किसी आचार्य को अल्प जल से स्नान करवाकर तथा नूतन रजोहरण, मुखवस्त्रिका, शयनासन, सदश श्वेत वस्त्रों को धारण करवाकर उसे सिंहासन पर बैठाएं। उस समय वहाँ अनेक आचार्य, उपाध्याय, साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाएँ एकत्रित होते हैं। आचार्य-पदोचित लग्नसमय के आने पर उस आचार्य के स्वगुरु, अथवा अन्य वयोवृद्ध, ज्ञानवृद्ध, गीतार्थाचार्य पूर्ववत् वासचूर्ण को अभिमंत्रित करें। तत्पश्चात् उस आचार्य के सिर पर वासक्षेप डालकर गणधरविद्या से तिलक करें। तत्पश्चात् उनका अनुगमन करते हुए (अन्य) आचार्य, उपाध्याय, साधु-साध्वी, श्रावक एवं श्राविकाएँ भी परमेष्ठीमंत्रपाठपूर्वक उसी प्रकार श्रीखण्ड (चन्दन) द्वारा तिलक करें', ' मूलग्रन्थ में साध्वी एवं श्राविकाओं द्वारा आचार्य को तिलक करने का निर्देश मिलता है, यहाँ पर उसका वासनिक्षेप करना - ऐसा अर्थ ज्यादा उचित लगता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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