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आचारदिनकर (खण्ड-४)
357 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि ८८. अविधवादशमी तप -
अविधवादशमी-तप की विधि इस प्रकार है - "भाद्रपदशुक्लदशमी दिन एकासनमथो निशायां च ।
__अंबापूजनजागरणकर्मणी सुविधिना कुर्यात् ।।१।।"
वैधव्य से रहित होने के लिए दशमी को जो तप किया जाता है, उसे अविधवादशमी-तप कहते हैं। इस तप में भाद्रपद सुदी (शुक्ल पक्ष) दशमी के दिन एकासन-तप करे। रात्रि में अम्बादेवी की प्रतिमा के समक्ष जागरण करे तथा अम्बादेवी की पूजा करे। श्रीफल आदि दस फल, १० नैवेद्य (पकवान) आदि रखे - इस प्रकार दस वर्ष तक करे। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
इस तप के उद्यापन में __ अविधवादसमी-तप, आगाढ़ इन्द्राणी की पूजा करे। संघवात्सल्य ।। सीता मासा | प्रथम वर्ष | भाद्रपद सुदी दशमी | उप.
द्वितीय वर्ष | भाद्रपद सुदी दशमी | उप. एवं संघपूजा करे। इस तप के । ततीय वर्ष | भाद्रपद सदी दशमी | उप. | करने से अवैधव्य-सुख की प्राप्ति | चौथा वर्ष | भाद्रपद सुदी दशमी | उप. होती है। यह श्रावकों के करने
पांचवाँ वर्ष भाद्रपद सुदी दशमी | उप. योग्य आगाढ़-तप हैं।
भाद्रपद सुदी दशमी | उप. सातवाँ वर्ष | भाद्रपद सुदी दशमी | उप.
आठवाँ वर्ष | भाद्रपद सुदी दशमी | उप. ८६. बृहन्नद्यावत-तप -
नवाँ वर्ष | भाद्रपद सुदी दशमी | उप. बहनंद्यावर्त्त-तप की विधि | दसवाँ वर्ष | भाद्रपद सुदी दशमी | उप. | इस प्रकार हैं - "बृहन्नंद्यावर्त्तविधिसंख्ययैकाशनादिभिः।
पूरणीयं तपश्चोद्यापने तत्पूजनं महत् ।।१।। __ नंद्यावर्त्त की आराधना के लिए जो तप किया जाता है, उसे नंद्यावर्त्त-तप कहते हैं। इस तप में सर्वप्रथम नंद्यावर्त की आराधना के लिए एक उपवास करे। तत्पश्चात् सौधर्मेन्द्र, ईशानेन्द्र और श्रुतदेवता की आराधना के लिए तीन आयंबिल करे। इसके बाद (प्रथम वलय में स्थित) अरिहंतादि आठ की आराधना के लिए आठ आयंबिल करे। तत्पश्चात् द्वितीय वलय में स्थित चौबीस जिनमाताओं की आराधना के लिए चौबीस एकासन करे। फिर तृतीय वलय में स्थित सोलह विद्यादेवियों की आराधना के लिए सोलह एकासन करे। तत्पश्चात्
छठवा वर्ष
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