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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 344 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि ७१. मुकुटसप्तमी-तप - अब मुकुटसप्तमी-तप की विधि बताते हैं - "आषाढ़ादि च पौषान्तं सप्तमासान् शितिष्वपि। सप्तमीषूपवासाश्च विधेयाः सप्त निश्चितम् ।।१।।" मुकुट उद्यापन द्वारा सप्तमी सम्बन्धी जो तप किया जाता है, उसे मुकुटसप्तमी-तप कहते हैं। इस तप में आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष एवं पौष मास की कृष्णपक्ष की सप्तमी के दिन उपवास करे। इसमें अनुक्रम से १. विमलनाथ २. अनंतनाथ ३. चन्द्रप्रभु अथवा शांतिनाथ ४ नेमिनाथ ५. ऋषभदेव ६. महावीरस्वामी एवं ७. पार्श्वनाथ - इन सात तीर्थकरों की बृहत्स्नात्रविधि से पूजा करे। इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक चाँदी की लोकनाली के ऊपर स्वर्णमय एवं रत्नमय मुकुट बनवाकर परमात्मा के समक्ष रखे। उपवास की संख्या के अनुसार सात-सात पकवान एवं फल परमात्मा के आगे चढाए। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप को करने से वांछित वस्तु की प्राप्ति होती ___ मुकुटसप्तमी-तप, आगाढ़ है। यह तप श्रावकों को । आषाढ़ वदि ७ विमलनाथ उपवास श्रावण वदि ७ अनंतनाथ | उपवास १ करने योग्य आगाढ तप है। | भाद्रपद वदि ७ | चन्द्रप्रभु या शान्तिनाथ | उपवास १ इस तप के यंत्र का न्यास आश्विन वदि ७ नेमिनाथ इस प्रकार है - | कार्तिक वदि ७ आदिनाथ मार्गशीर्ष वदि ७ | पौष वदि ७ पार्श्वनाथ ७२. अम्बातप-विधि - अब अम्बा-तप की विधि बताते हैं - "शुक्लादिपंचमीष्वेव पंचमासेषु वै तपः। __ एकभक्तादि वै कार्यमम्बापूजनपूर्वकं ।।१।। अम्बादेवी की आराधना के लिए जो तप किया जाता है, उसे अम्बा-तप कहते हैं। इस तप में पाँच मास की शुक्ल पंचमी को नेमिनाथ भगवान एवं अम्बिकादेवी की पूजापूर्वक यथाशक्ति तप करे। उपवास १ उपवास १ उपवास १ उपवास १ महावीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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