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आचारदिनकर (खण्ड-४)
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि तीर्थंकर के आयम्बिल करने के बाद पारणा भी कर सकते हैं। इस तरह इस तप में ५०४ आयंबिल होते हैं ।
इस तप के उद्यापन में आयम्बिल की संख्या के अनुसार, अर्थात् ५०४-५०४ विविध जाति के फल, पकवान एवं मुद्राएँ बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक परमात्मा के समक्ष रखे । साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से विपत्तियाँ दूर होती हैं । यह श्रावकों के करने योग्य अनागाढ़-तप है । इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है
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कुल आ.
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ऋषभ आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आ. आं. देव
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२१ दमयन्ती-तप, अनागाढ़, (इसी प्रकार अन्य तीर्थकरों के तप की भी यही विधि है | )
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६६. आयतिजनक - तप
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अब आयतिजनक - तप की विधि बताते हैं - "कार्यं द्वात्रिंशदाचाम्लैः, स्वसत्त्वेन निरंतरैः ।
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एवं स्यादायतिशुभं तप उद्यापनान्वितम् । 9 । ।“ आयति, अर्थात् परवर्तीकाल । जो तप कालान्तर में शुभत्व प्रदान करे, उसे आयतिजनक - तप कहते हैं । यह तप निरंतर बत्तीस आयम्बिल करने से पूर्ण होता है ।
इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक २४-२४ पुष्प, फल एवं पकवान परमात्मा के समक्ष रखे।' साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे ।
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इस तप के करने से उत्तरकाल में शुभत्व की प्राप्ति होती है 1 यह श्रावकों को करने योग्य आगाढ़ - तप है । इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है
मूलपाठ में २४- २४ की संख्या - परिमाण में वस्तुएँ चढ़ाने का उल्लेख है, जबकि आयम्बिल की संख्या अनुसार इनकी भी संख्या ३२ - ३२ ही होनी चाहिए।
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