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आचारदिनकर (खण्ड- ४ )
६०. कल्याणक - अष्टानिका - तप अब कल्याणक - अष्टानिका - तप की विधि बताते हैं “नवभक्ताष्टकं कार्यमर्हत्कल्याणपंचके ।
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प्रत्येकं पूर्यते तच्च बृहदष्टानिका तपः । । च्यवन, जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान ओर निर्वाण कल्याणकों से संयुक्त हुए आठ-आठ दिन का तप कल्याणक-अष्टानिका - तप कहलाता है। इसमें ऋषभदेव तीर्थंकर के एक-एक कल्याणक को लक्ष्य में रखकर आठ-आठ एकासन करने से चालीस एकासन से एक तीर्थंकर के कल्याणकों का तप पूरा होता है । इस तरह दूसरे तेईस तीर्थंकरों के कल्याणकों को लक्ष्य में रखकर चालीस-चालीस एकासन करने से ६६० दिन में यह कल्याणक-अष्टानिका तप पूरा होता है। कदाचित् एक तीर्थंकर से दूसरे तीर्थंकर के कल्याणक - तप के बीच में व्यवधान पड़े, तो कोई आपत्ति नहीं है, परन्तु चालीस एकासन तो एक साथ ही करे ।
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इस तप के उद्यापन में एक सौ बीस - एक सौ बीस सर्वजाति के फल एवं पकवान बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक परमात्मा के आगे रखे । साधुओं को वस्त्र, अन्न-पान एवं वस्त्र का दान दे । साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे । इस तप के करने से तीर्थंकर - नामकर्म का बन्ध होता है । यह तप साधु एवं श्रावक के करने योग्य अनागाढ़ - तप है ! इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है
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अष्टानिका-तप, अनागाढ़ (एक जिनेश्वर के आश्रय से)
ऋषभदेव के च्यवन ए. ए. ए.
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जन्म
व्रत
ज्ञान
| निर्वाण
६१. आयम्बिलवर्धमान - तप
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि
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ए. ए. ए. ए. ए.
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अब आयम्बिलवर्धमान - तप की विधि बताते हैं
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इन पाँच होने से आदि एक
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शेष अन्य जिनेश्वरों के तप की भी यही विधि है
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