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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४) 332 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि साधु एवं श्रावकों - दोनों को करने योग्य आगाढ़ - तप है । इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है श्रेणी-तप, आगाढ़, उपवास-८३, पारणा - २७, कुल दिन ११० उ. १ पा. उ. २ पा. उ. ३ पा. उ. ४ पा. उ. ५ पा. उ. ६ पा. उ. १ पा. उ. १ पा. उ. २ पा. उ. १ पा. उ. २ पा. उ. ३ पा. ५५. मेरु-तप -- - ५६. बत्तीस कल्याणक - तप अब मेरु-तप की विधि बताते हैं “प्रत्येकं पंचमेरूणामुपोषणकपंचकम् । एकान्तरं मेरूतपस्तेन संजायते शुभम् ।। १ ।। " मेरु-पर्व की संख्या के अनुसार जो तप किया जाता है, उसे मेरु-तप कहते हैं । इसमें पाँच मेरु को लक्ष्य में रखकर प्रत्येक मेरु के पाँच-पाँच उपवास एकान्तर पारणे से करे । इस तरह पच्चीस उपवास और पच्चीस पारणे मिलकर कुल ५० दिन में यह तप पूरा होता है । इस तप के उद्यापन में बृहत्स्नात्रविधिपूर्वक, स्वर्ण के पाँच मेरु बनवाकर परमात्मा के आगे रखे । साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे । इस तप के करने से उत्तम पद की प्राप्ति होती है। यह साधु एवं श्रावक के करने योग्य आगाढ़ - तप है । इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है - Jain Education International उ. १ पा. उ. १ पा. उ. २ पा. उ. २ पा. उ. ३ पा. उ. ३ पा. उ. ४ पा. उ. ४ पा. उ. ५ पा. - - अब बत्तीस कल्याणक - तप की विधि बताते हैं “उपवास त्रयं कृत्वा द्वात्रिंशदुपवासकाः । उ. २ पा. उ. ३ पा. उ. ४ पा. उ. ५ पा. उ. ६ पा. उ. ७ पा. पंचमेरु-तप, आगढ़ प्रथम मेरु उ. ५ पा. ५ द्वितीय मेरु उ. ५ पा. ५ तृतीयमेरु उ. ५ पा. ५ चतुर्थ मेरु उ. ५ पा. ५ पंचम मेरु उ. ५ पा. ५ For Private & Personal Use Only - एकभक्तान्तरास्तस्मादुपवासत्रयं वदेत् ॥ १ ॥ बत्तीस उपवास द्वारा किए जाने वाले कल्याणकों को बत्तीस कल्याणक कहते हैं। इसमें सर्वप्रथम निरन्तर तीन उपवास करके www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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