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मास ५ । बियासन । मास ५ । एकासन मास ५ ।
शुक्ल ५
नीवि
शुक्ल ५
आचारदिनकर (खण्ड-४) 327 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि पाँच-पाँच की संख्या में अष्टप्रकारी पूजापूर्वक पुस्तक के आगे रखे। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है - उद्यापन में साधर्मिकवात्सल्य
लघुपंचमी-तप एवं संघपूजा करे। इस तप के करने
शुक्ल ५ से ज्ञान की प्राप्ति होती है। यह तप साधुओं एवं श्रावकों - दोनों को
शुक्ल ५ करने योग्य आगाढ़-तप है।
मास ५ | आयम्बिल ४६. बृहत्पंचमी-तप -
| मास ५ । उपवास | शुक्ल ५ । अब बृहत्पंचमी-तप की विधि बताते हैं - “एवमेव तपो वर्ष पंचकं कुर्वतां नृणाम्।
__ बृहत्पंचमिकायास्तु तपः संपूर्यते किल ।।१।।
इस तप का आरम्भ एवं समापन लघुपंचमी-तप की भाँति ही करे। प्रथम वर्ष की शुक्ल पंचमी को बियासन करे, दूसरे वर्ष की शुक्ल पंचमी को एकासन, तीसरे वर्ष नीवि, चौथे वर्ष आयम्बिल और पाँचवें वर्ष की शुक्ल पंचमी को उपवास करें - इस तरह पाँच वर्ष में यह तप पूर्ण होता है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है -
इस तप का उद्यापन | ४१. बहत्पंचमी तप आगाढ लघपंचमी-तप की भाँति ही करे, किन्तु | वर्ष १ | बियासणा | शुक्ल ५ । उद्यापन में सभी वस्तएँ | वर्ष २| एकासणा | शुक्ल ५ । पच्चीस-पच्चीस रखे। इस तप के | वर्ष ३ | नीवी । शुक्ल ५ ।
वर्ष ४ | आयम्बिल करने से महाज्ञान की प्राप्ति होती है।
। | वर्ष ५ / उपवास | शुक्ल ५ । यह तप साधुओं एवं श्रावकों - दोनों के करने योग्य आगाढ़-तप है।
क्ल पंचमी को एका शुक्ल पंचमी को लघुपंचमी-तप की
शुक्ल ५
५०. चतुर्विधसंघ-तप -
अब चतुर्विधसंघ-तप की विधि बताते हैं - "उपवासद्वयं कृत्वा ततः वत्सर संख्यया।
एकान्तरोपवासश्च पूर्ण संघ तपो भवेत् ।।१।।
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