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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४) 324 पारणा करके द्वितीय काहलिका पूर्ण करे । इस तप में कुल ३३४ उपवास तथा ८८ पारणे होते है । इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है इस तप के उद्यापन में बृहत्स्ना विधिपूर्वक पूजा करके प्रतिमा को बृहत्मुक्तावली का हार पहनाए । साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से विमल गुणों की प्राप्ति होती है । यह तप साधुओं एवं श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप हैं । ४६. दसविधयतिधर्म-तप - बताते हैं अपि । अब दसविधयतिधर्म - तप की विधि - “संयमादौ दशविधे धर्मे एकान्तरा १ क्रियंत उपवासा उपवासा यत्तपः पूर्यते हि तैः ।।9।। " दस प्रकार के यतिधर्म की आराधना के लिए जो तप किया जाता है, उसे दसविधयतिधर्म - तप कहते हैं । इस तप में एकान्तर दस उपवास करे ।' प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि पा. उ. १ पा. उ. २ पा. उ. १ १ 9 9 उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. उ. १आवली 10/0 で E १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ लता - १ 9 १ ३ १ १ १ १ पारणांतर 9 २ ३ ४ ५ ६ ७ १ 9 १ १ १ १ १ १ १ १ काहलिका दाड़िम - ६०, एकावली तप में दिन- ३३४, पारणा - ८८, आगाढ़ 9 १ १ 9 १ १ 9 9 9 १ १ २ ३ १ १ 9 9 उ. पा. उ. पा. उ. पा. १ १ १ 9 ३ पा. पा. पा. पा. १ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ t १० ११ १२ १३ १४ १५ |F F F F F F F | पा. 9 १ पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. पा. १६ लता - २ आवली २ 9 9 १ १ १ १ 9 १ १ aa १ पदक मूलग्रन्थ में इस तप की विधि बताते हुए एकांतरसहित तेरह उपवास करने का निर्देश दिया गया है तथा यंत्र में एकान्तरसहित ६ उपवास का उल्लेख किया गया है। जबकि तप के नामानुसार तथा दस प्रकार के यतिधर्म की अपेक्षा से उपवास भी दस ही होने चाहिये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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