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________________ आगाढ़ तप कमेप्रवाद ए. प्रत्याख्यानप्रवाद ए. ६ कल्याणनाम ए. G||Karan ज्ञानप्रवाद | ए.| १२ । आचारदिनकर (खण्ड-४) 323 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि . के दिन प्रारम्भ कर, चौदह मास की शुक्ल चतुर्दशी के दिन यथाशक्ति एकासन आदि तप करके यह तप पूर्ण करे। इस तप के उद्यापन में ज्ञानपंचमी की भाँति चौदह-चौदह पुस्तकादि द्वारा ज्ञानपूजा करे। साधर्मिकवात्सल्य शुक्ल १४ पूर्व तप शुक्ल १४ पूर्व एवं संघपूजा करे। इस १ उत्पाद पूर्व ए. | ८ | तप के करने से सम्यक् २ अग्रायणीय| ए. | श्रुतज्ञान की प्राप्ति होती ३ । वीर्यप्रवाद | ए. १० विद्याप्रवाद |ए. ४ अस्तिप्रवाद ए. है। यह तप साधुओं एवं प्राणावाय | ए. श्रावकों के करने योग्य | ६ सत्यप्रवाद | ए. १३ क्रियादिशा | ए. आगाढ़-तप है। इस तप । ७ आत्मप्रवाद ए. १४ लोकबिंदुसार | ए. | के यंत्र का न्यास इस प्रकार है - ४५. एकावली-तप - अब एकावली-तप की विधि बताते हैं - “एकाद्वित्र्युपवासैः काहलके द्वे तथा च दाडिमके। वसुसंख्यैश्च चतुर्थैः श्रेणी कनकावलीच्च।।१।। चतुत्रिंशच्चतुर्थेश्च पूर्यते तरलः पुनः। समाप्तिमेति साधूणामेव मेकावली तपः।।२।।" एक आवली की तरह उपवास करने से इसे एकावली-तप कहते हैं। प्रथम काहलिका में निरन्तर क्रमशः एक, दो, तीन उपवास करके पारणा करे। तत्पश्चात् एकान्तर पारणे वाले आठ उपवास करे। उसके बाद एक उपवास कर पारणा, दो उपवास कर पारणा, तीन उपवास कर पारणा - इस तरह चढ़ते-चढ़ते सोलह उपवास पर पारणा करने से हार की एक आवलिका (लड़ी) पूरी होती है। इसके बाद पदक के एकान्तर चौंतीस उपवास करे। तत्पश्चात् क्रम से, अर्थात् सोलह उपवास कर पारणा, पन्द्रह उपवास कर पारणा - इस तरह निरन्तर उतरते-उतरते एक उपवास कर पारणा करने से द्वितीय आवलिका (लड़ी) पूरी होती है। पारणे के बाद पुनः द्वितीय दाड़िम के लिए पारणे के अंतर वाले आठ उपवास करे। इसके बाद तीन उपवास पारणा, दो उपवास पारणा और अंत में एक उपवास पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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