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________________ 317 प्रायश्चित्त. आवश्यक एवं तपविधि आचारदिनकर (खण्ड-४) ३६. माणिक्यप्रस्तारिका-तप - अब माणिक्यप्रस्तारिका-तप की विधि बताते हैं - "माणिक्यप्रस्तारी आश्विन शुक्लस्य पक्ष संयोगे। आरभ्यैकादशिकां राकां यावद्विदध्याच्च।।१।।" माणिक्य की प्रस्तारिका की तरह इस तप का विस्तार होने से यह माणिक्यप्रस्तारिका-तप कहलाता है। आश्विन शुक्ल एकादशी को आरम्भ कर पूर्णिमा तक यह तप करे, अर्थात् एकादशी को उपवास, द्वादशी को एकासन, त्रयोदशी को नीवि, चतुर्दशी को आयम्बिल, पूर्णिमा को बियासन (दिन में मात्र दो बार एक आसन पर बैठकर खाना), अथवा एकादशी को उपवास, द्वादशी को आयंबिल, त्रयोदशी को नीवि, चतुर्दशी को आयंबिल और पूर्णिमा को बियासन करे तथा इन पाँच दिनों में प्रभात में सूर्योदय से पहले स्नान कर सौभाग्यशालिनी सुहागिन का मुखमंडन तथा उद्वर्तन करे। तत्पश्चात् स्वयं भी पवित्र सुन्दर वस्त्र, अथवा केसरिया वस्त्र का जोड़ा पहनकर शक्ति के अनुसार आभूषण धारण करे। अखंड अक्षत की अंजलि भरकर उस पर एक जायफल रखकर मंगलोच्चारपूर्वक चैत्य की प्रदक्षिणा देकर वह अंजलि जिनेश्वर के आगे रखे। दूसरी प्रदक्षिणा में अक्षत की अंजलि पर श्रीफल रखकर जिनेश्वर के पास रखे। तीसरी प्रदक्षिणा में बीट तथा पर्णसहित बिजौरा अक्षत पर रखकर जिनेश्वर के आगे रखे। चौथी प्रदक्षिणा में अक्षत की अंजलि पर सुपारी रखकर जिनेश्वर के आगे रखे। तत्पश्चात् सप्तधान्य, लवण, एक सौ आठ हाथ वस्त्र, एक सौ आठ लाल चणोठी तथा केसरिया वस्त्र परमात्मा के आगे रखे - इस प्रकार चार वर्ष तक करे। . इस तप के उद्यापन में १०८ पूर्ण कुंभ दीपकसहित रखे तथा स्वर्ण की बत्ती वाला चाँदी का दीपक सुकुमारिका को दे। साधर्मिकवात्सल्य एवं संघपूजा करे। इस तप के करने से निर्मल गुण की प्राप्ति होती है। यह साधुओं एवं श्रावकों के करने योग्य आगाढ़-तप है। इस तप के यंत्र का न्यास इस प्रकार है - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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