SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदिनकर (खण्ड 9 २ क. क. १४. वर्धमान-प 289 वज्रमध्य चांद्रायण - तप शुक्लपक्ष में वृद्धि ३ ४ ५ ६ ७ τ € १० ११ १२ | १३ | १४ क. क. क. क. क. क. क. क. क. क. क. क. क. 9 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि अब वर्धमान - तप की विधि बताते है - “ऋषभादेर्जिनसंख्यावृद्धया तावंति चैकभक्तानि । वीरदेराप्येवं वलमानं वर्धमान तपः । । १ । । अथ चैकेकमर्हन्तं प्रत्येकाशनकानि च । पंचविंशति संख्यानि षट्शताहेन पूर्यते । । २ । ।" जिसकी वृद्धि हो, वह वर्धमान - तप कहलाता है । इस तप की विधि इस प्रकार है प्रथम श्री ऋषभदेवस्वामी के निमित्त एकभक्त करे । श्री अजितनाथस्वामी के निमित्त दो एकभक्त करे । इस तरह बढ़ते-बढ़ते श्री महावीरस्वामी के निमित्त चौबीस एकभक्त करे । इसके पश्चात् पश्चानुपूर्वी द्वारा श्री महावीरस्वामी के निमित्त एक एकभक्त श्री पार्श्वनाथस्वामी के निमित्त दो एकभक्त इस तरह बढ़ते-बढ़ते श्री ऋषभदेवस्वामी के निमित्त चौबीस एकभक्त करे, अर्थात् एक-एक भगवंत के निमित्त कुल पच्चीस-पच्चीस एकभक्त होते हैं, अथवा एक साथ हर एक भगवंत के निमित्त पच्चीस-पच्चीस एकभक्त करे दूसरी विधि है । इस प्रकार दोनों ही विधि में यह तप कुल छः सौ दिनों में पूर्ण होता है। इस तप को करने वाले इन दोनों विधियों में से किसी भी एक विधि द्वारा ६०० दिनों में यह तप पूर्ण करे । ' यह उद्यापन में चौबीस जिनेश्वरों की बृहत्स्नात्रविधि से स्नात्रपूजा करें तथा परमात्मा के सम्मुख चौबीस - चौबीस पुष्प, फल, पकवान आदि चढाए । संघ की भक्ति करे, अर्थात् साधर्मीवात्सल्य करे। यह - १५ शुक्लपक्ष - ग्रन्थकार ने इस तप के कुल दिन ६२५ बताए थे, जबकि चौबीस तीर्थंकरों के प्रत्येक के २५-२५ एकभक्त करे, तो कुलदिन 24 x 25 = 600 ही होते हैं, अतः इस तप के कुलदिन ६०० ही होने चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy