________________
आचारदिनकर (खण्ड-४) 250 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि तीन बार नमस्कारमंत्र बोले। तत्पश्चात् क्षुद्रोपद्रव के उपशमनार्थ कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में चार बार चतुर्विंशतिस्तव का चिन्तन करे। कायोत्सर्ग पूर्ण करके प्रकट रूप से चतुर्विंशतिस्तव बोले। तत्पश्चात् प्रव्रज्या-विधान का पाठ करे। इस प्रकार यह दैवसिक-प्रतिक्रमण की विधि बताई गई है।
अब पाक्षिक-प्रतिक्रमण की विधि बताते हैं -
संक्षिप्त रूप में पाक्षिक-प्रतिक्रमण की विधि - पाक्षिक मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करके वन्दन देना, संबुद्ध क्षमापना (संबुद्धा खामणा) करना, आलोचना करके पुनः वन्दन देना, प्रत्येक खामणा (क्षमापना) कर वन्दन करके क्रमशः पाक्षिकसूत्र एवं श्रमणसूत्र बोलना। फिर अभ्युत्थान, कायोत्सर्ग, मुखवस्त्रिका-प्रतिलेखना, वन्दन, समाप्तिवन्दन करना - यह पाक्षिक-प्रतिक्रमण की विधि है। विवेचन -
चतुर्दशी के दिन दैवसिक-प्रतिक्रमण की भाँति ही प्रतिक्रमणसूत्र (पगामसज्झाय/ वंदित्तु) तक प्रतिक्रमण करे। तत्पश्चात् खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन करते हुए इस प्रकार कहे - "भगवन् पक्खियमुहपत्तियं पडिलेहेमि"- इस प्रकार बोलकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करके द्वादशावर्त्तवंदन करे। तत्पश्चात् "इच्छाकारेणसंदिसह भगवन् संबुद्धाखामणेणं अब्भुट्टिओमि अब्मिंतर पक्खियं खामेउं। इच्छं खामेमि पक्खियं जं किंचि. इत्यादि यावत् तस्समिच्छामि दुक्कडं" तक बोले। तत्पश्चात् खड़ा होकर "भगवन् पक्खिअं आलोएमि इच्छं आलोएमि पक्खियं जो मे. इत्यादि सम्पूर्ण आलोचना का पाठ बोले। तत्पश्चात् गुरु कहते हैं - अपनी इच्छानुसार उपवासपूर्वक प्रतिक्रमण करो और पाक्षिक- आलोचना हेतु एक उपवास या दो आयम्बिल, अथवा तीन नीवि, अथवा चार एकासना, अथवा दो हजार गाथा का स्वाध्याय आदि तपस्या करते हुए अग्रिम पक्ष में प्रवेश करो।
पुनः द्वादशावर्त्तवन्दन करे। तत्पश्चात् खड़े होकर “देवसियं आलोइयं वइक्कंतं प्रत्येक खामणेणं अब्भुट्ठिओमि अभिंतर पक्खियं खामेमि" इस प्रकार बोलकर नीचे बैठकर सर्वप्रथम गुरु या स्थापनाचार्य से इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पक्खियं खामेउं इच्छं
त
और पाक्षिक, अथवा चार । अग्रिम पक्ष में खड़े होकर पक्खियं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org