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________________ आचारदिनकर (खण्ड5-8) 246 इस इस प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि ज्येष्ठ (ज्येष्ठमासीय मूलनक्षत्र), आषाढ और श्रावण - इस प्रथम त्रिक में छः अंगुल, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक द्वितीय त्रिक में आठ अंगुल तथा मृगशिर, पौष और माघ तृतीय त्रिक में दस अंगुल और फाल्गुन, चैत्र एवं वैशाख - इस चतुर्थ त्रिक में आठ अंगुल की वृद्धि करने से प्रतिलेखना का पौरुषीकाल होता है। पौष मास में छाया शरीर - परिमाण, अर्थात् चारपाद और उससे नौ अंगुल अधिक होती है । फिर घटते घटते आषाढ़ मास में तीन पाद रह जाती है । जैसा कि पूर्व में कहा गया है, उसके अनुसार इनका प्रमाण विशेष जान लेना चाहिए। पौष मास में मध्याहून में ( १२ बजे के समय) हाथ की छाया बारह अंगुल होती है, वह प्रत्येक मास में दो-दो अंगुल कम होती हुई आषाढ़ मास में पूर्णतः समाप्त हो जाती है । इसे सरलता से जानने के लिए द्वादशारयंत्र का न्यास करना चाहिए । Jain Education International - उसके बाद साधु खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहे -“हे भगवन् ! प्रथम प्रहर का बहुत काल व्यतीत हो चुका है, साधुगण यथायोग्य कार्यों के हेतु तत्पर हों ?" इस प्रकार कहे तथा मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करके मिट्टी, नारियल, काष्ठ या आलाबु से बने सभी पात्रों की प्रतिलेखना करें। तत्पश्चात् चैत्यपरिपाटी आदि कर्म करके गमनागमन में लगे दोषों की आलोचना करे । उसके बाद ( संकल्पित ) प्रत्याख्यान पूर्ण करने हेतु मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे । तत्पश्चात् “पारावउं भातपाणी निव्विय आंबिल एकासणं कारेहं । पोरसि पुरिमढ चउव्विहाहारेहिं जीवकाचि वेला तइए पारावेमि " - इस प्रकार कहकर चैत्यवंदन करे | दोनों प्रतिक्रमण (रात्रिक एवं दैवसिक - प्रतिक्रमण) एवं चैत्यपरिपाटी आदि में जिनेश्वर परमात्मा का उत्कृष्ट चैत्यवंदन करते हैं तथा अन्यत्र सभी जगह मध्यम चैत्यवंदन करते हैं। भोजन आदि करने के बाद सोते एवं जागते समय मध्यम चैत्यवंदन करते हैं। तत्पश्चात् क्रमशः पूर्व में बताई गई सम्पूर्ण दिनचर्या में स्थित होते हुए चतुर्थ प्रहर का प्रारम्भ होने पर प्रतिलेखना के समय पूर्व में कहे गए अनुसार, अर्थात् प्रातः काल में की गई प्रतिलेखना के अनुसार क्रमशः प्रतिलेखना करे। यहाँ विशेष For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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