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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 244 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि हैं। तत्पश्चात् सामायिकदण्डक, आलोचनापाठ, तस्सउत्तरी एवं अन्नत्थसूत्र बोलकर कायोत्सर्ग करे। कायोत्सर्ग में षण्मासिक एवं वर्धमानतप का एक बार चिन्तन करे। कायोत्सर्ग पूर्ण करके चतुर्विंशतिस्तव बोले। चतुर्विंशतिस्तव बोलकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे तथा द्वादशावर्त्तवन्दन करे। तत्पश्चात् शक्ति के अनुसार प्रत्याख्यान करे। फिर “इच्छामोणुसट्ठियं."- इस प्रकार कहकर नीचे बैठ जाए तथा तीन स्तुति बोले। तत्पश्चात् शक्रस्तव बोलकर चार स्तुतियों द्वारा उत्कृष्ट चैत्यवंदन करे। पुनः शक्रस्तव का पाठ बोलकर आचार्य, उपाध्याय, गुरु एवं सर्व साधुओं को वन्दन करे। गच्छ-परम्परा में अन्तर होने से कुछ लोग शक्रस्तव के बाद स्तोत्र बोलकर फिर आचार्यादि को वन्दन करते हैं। तत्पश्चात् दो बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके क्रमशः "भगवन् पडिलेहणं संदिसावेमि एवं पडिलेहणं करेमि"- इस प्रकार कहकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे। यहाँ प्रतिलेखना की विधि संक्षेप में बताते हैं - सूर्य उदय होने पर मुखवस्त्रिका, चोलपट्ट, कल्पत्रय, रजोहरण, संस्तारक, उत्तरपट्टक की प्रतिलेखना करे। तत्पश्चात् मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करने के बाद दो बार खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन करके क्रमशः कहे - "भगवन् अंग पडिलेहणं सदिसावेमि, अंगपडिलेहण करेमि।" इस प्रकार कहकर स्थापनाचार्य, चोलपट्ट, कल्पत्रय (ओढ़ने की तीन चादर) एवं रजोहरण की प्रतिलेखना करे। इन सबकी प्रतिलेखना की विधि साधु-प्रतिलेखनाविधि से जाने। तत्पश्चात् खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहे - "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि मुहपत्ति पडिलेहेमि।" पुनः दो बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके क्रमशः कहे - "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् उपधि संदिसावउं, उपधि पडिलेहउं"- इस प्रकार कहकर संस्तारक, उत्तरपट्ट आदि की प्रतिलेखना करें। पुनः दो बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके क्रमशः कहे- "भगवन् वसति संदिसावउं, वसति पडिलेहउं"- इस प्रकार कहकर वसति एवं मात्रक (स्थण्डिलभूमि) की दंडपोंछन से प्रमार्जना करे। तत्पश्चात् गमनागमन में लगे दोषों की आलोचना करके गुरु के आगे दो बार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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