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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 231 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि प्रतिलेखना की अनुज्ञा मांगकर पाट, अथवा पादपोंछन की प्रतिलेखना करे। तत्पश्चात् खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहे - “हे भगवन् ! मुझे स्वाध्याय करने की अनुज्ञा प्रदान करें । " ( अनुज्ञा प्राप्त होने के पश्चात्) “मैं स्वाध्याय करता हूँ" - इस प्रकार कहे तथा खड़ा होकर तीन बार नमस्कारमंत्र पढ़कर “जयइ जगजीवजोणी" इत्यादि पाँच या पच्चीस गाथाएँ बोले। तत्पश्चात् पुनः खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके कहे - “हे भगवन् ! उपधि ग्रहण करने की तथा उसकी प्रतिलेखना करने की अनुज्ञा प्रदान करें।" इस प्रकार कहकर यदि पूर्व में प्रतिलेखना काल के समय वस्त्र एवं पौषधागार आदि की प्रतिलेखना न की हो, तो उस समय प्रतिलेखना करे और यदि प्रतिलेखना कर ली हो, तो उस समय मात्र खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन ही करे । तत्पश्चात् दो बार खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके श्रावक कहे - "हे भगवन् ! वसति ग्रहण करने हेतु तथा उसकी प्रतिलेखना करने हेतु अनुज्ञा प्रदान करें।" इस प्रकार कहकर यदि पूर्व में प्रतिलेखनाकाल के समय वसति, मात्रक आदि की प्रतिलेखना न की हो, तो उस समय प्रतिलेखना करे। यदि प्रतिलेखना कर ली हो, तो भी खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके उसकी पूर्ति करे । दण्डप्रोंछन द्वारा वसति की प्रमार्जना करे। तत्पश्चात् पुनः गुरु के समीप आकर खमासमणासूत्रपूर्वक वन्दन करके इस प्रकार कहे - "हे भगवन् ! कृपा करके आप मुझे प्रत्याख्यान कराएं।" तत्पश्चात् श्रावक यदि आहार करने का इच्छुक हो, तो प्रातः पौषध ग्रहण करते समय दिवस सम्बन्धी पौषध में गुरु नवकारसी ( सूर्योदय से ४८ मिनिट तक चारों आहार का त्याग) प्रत्याख्यान कराएं। (यहाँ मूलग्रन्थ में नवकारसी के प्रत्याख्यान का सूत्र दिया गया है ।) तत्पश्चात् स्वाध्यायकाल के समय पुनः आयम्बिल, एकभक्त, निर्विकृति आदि या त्रिविधाहार उपवास का प्रत्याख्यान कराये। रात्रिपौषध में संध्या के समय दिवसचरिम प्रत्याख्यान कराएं। अगर श्रावक ने आहार ग्रहण किया हो, तो वह दो बार द्वादशावर्त्त वन्दन करता है और उसने यदि आहार ग्रहण नहीं किया है, तो वह द्वादशावर्त्तवन्दन नहीं करके आचार्य, उपाध्याय, गुरु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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