________________
आचारदिनकर (खण्ड-४) ___230 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि बार या एक बार पौषधदण्डक का उच्चारण करते हैं तथा श्रावक भी उनके द्वारा उच्चारित दण्डक का अनुसरण, अर्थात् उच्चारण करता है। पौषधव्रत ग्रहण करने का दण्डक (मूलपाठ का भावार्थ) इस प्रकार
भावार्थ -
हे पूज्य ! मैं पौषध करता हूँ। उसमें आहार-पौषध देश से (कुछ अंश से), अथवा सर्व से (सर्वांश से) ग्रहण करता हूँ, शरीर-सत्कार-पौषध सर्व से करता हूँ। ब्रह्मचर्य-पौषध सर्व से करता हूँ और अव्यापार-पौषध भी सर्व से करता हूँ। इस तरह चार प्रकार के पौषधव्रत में स्थित होता हूँ। जहाँ तक दिन अथवा अहोरात्रपर्यन्त मैं प्रतिज्ञा का सेवन करूं, वहाँ तक मन, वचन और काया से सावध प्रवृत्ति न करूं और न करवाऊं। हे भगवन् ! इस प्रकार की जो कोई अशुभ प्रवृत्ति हुई हो, उससे मैं निवृत्त होता हूँ, उन अशुभ प्रवृत्तियों को मैं बुरी मानता हूँ, उसकी गर्दा करता हूँ तथा इस अशुभ प्रवृत्ति को करने वाले कषायात्मा का मैं त्याग करता हूँ।
यहाँ दिवस एवं अहोरात्रि के पौषध में आहार ग्रहण करने के लिए, अर्थात् आहार ग्रहण करने के उद्देश्य से “आहार पोसह देसओ"- इन पदों का उच्चारण करे, शेष सब उसी प्रकार से बोले। तत्पश्चात् बैठकर इस प्रकार कहे - "हे भगवन् ! इच्छापूर्वक आप मुझे सामायिकव्रत ग्रहण करने हेतु मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करने की अनुज्ञा दें। इस प्रकार से कहकर श्रावक मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे, तत्पश्चात् श्रावक खड़ा होकर तीन बार या एक बार नमस्कारमंत्र का उच्चारण करे। फिर श्रावक कहे - "हे भगवन् ! सामायिकदण्डक का उच्चारण कराएं। तत्पश्चात् गुरु तीन बार या एक बार सामायिकदण्डक का उच्चारण कराते हैं। (मूलग्रन्थ में यहां करेमि भंते का पाठ दिया गया है।) तत्पश्चात् खमासमणासूत्रपूर्वक वंदन करके वर्षाकाल में श्रावक कहे - "हे भगवन् ! मुझे काष्ठासन ग्रहण करने की तथा उसकी प्रतिलेखना करने की अनुज्ञा प्रदान करें। शेष आठ मास में काष्ठासन की जगह पादपोंछन ग्रहण करने की तथा उसकी प्रतिलेखना करने की अनुज्ञा मांगते हैं। इस प्रकार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org