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आचारदिनकर (खण्ड-४)
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प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि की कुल संख्या १+३+३+३+६+६+३+६+६ = ४६ होती है और इन ४८ भंगों के तीनों काल की अपेक्षा से, अर्थात् न तो भूत में किया, न वर्तमान में किया और न ही भविष्य में करूंगा की अपेक्षा से ( ४६ × ३ १४७) १४७ भंग होते हैं ।
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इस प्रकार प्रत्याख्यान - आवश्यक का यह प्रकरण पूर्ण होता
है ।
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इस प्रकार संक्षेप में क्रमशः षडावश्यक
१. सामायिक २. ५. कायोत्सर्ग एवं
६ .
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चतुर्विंशतिस्तव ३ वन्दन ४. प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान की व्याख्या की गई है । जो अवश्य करणीय है, उसे आवश्यक क्रिया कहते हैं । साधु एवं श्रावकों के लिए षडावश्यक नित्य करणीय हैं। उसके लिए विधि बताते हैं । सर्वप्रथम सामायिक की विधि बताते हैं । वह इस प्रकार है
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सर्वविरति-सामायिक की विधि प्रव्रज्याग्रहण की विधि में कही गई है, अतः इन दोनों की विधि उसमें देखें । वर्तमान में श्रावकों द्वारा जो अवश्य करणीय है, ऐसी सामायिक - आवश्यक की विधि बताते हैंसर्वकार्यों के आरम्भ में सर्वप्रथम परमेष्ठीमंत्र का पाठ करते हैं, तो आवश्यकविधि में नमस्कारमंत्र का पाठ क्यों नहीं करें ? अतः सर्वप्रथम नमस्कारमंत्र बोलें। सामायिक की संक्षिप्त विधि मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना, नमस्कारमंत्र, सामायिक का पाठ, इरियावहि, आसन की प्रतिलेखना, स्वाध्याय, प्रत्याख्यान एवं गुरु- साधुओं को वन्दन करना यह सामायिक की विधि है ।
व्याख्या
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सर्वप्रथम श्रावक आसन को लेकर आगे रख दे तथा गुरु को नमस्कार करके इस प्रकार बोलें - "हे भगवन् ! इच्छापूर्वक आप मुझे सामायिक ग्रहण करने के लिए मुखवस्त्रिका - प्रतिलेखना करने की अनुज्ञा प्रदान करें।“ इस प्रकार ( अनुज्ञा प्राप्त करने के बाद) बैठकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करता है। तत्पश्चात् खड़े होकर तीन बार या एक बार नमस्कारमंत्र बोलता है । तत्पश्चात् गुरु के आगे ( श्रावक ) इस प्रकार कहें... "हे ! सामायिकदण्डक का उच्चारण कराएं।" तत्पश्चात् गुरु तीन बार या एक बार सामायिकदण्डक का
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भगवन्
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