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________________ आचारदिनकर (खण्डड-४) 217 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि तिविहार - त्रिविधाहार उपवास में पानी लिया जाता है, अतः जल सम्बन्धी छः अपवाद ( आगार ) मूल पाठ में सव्वसमाहिवत्तियागारेणं के आगे इस प्रकार बढ़ाकर बोलना चाहिए “पाणस्स लेवालेवेण वा अच्छेण वा बहुलेण वा ससित्थेण वा असित्थेण वा " उक्त जल सम्बन्धी आगारों का भावार्थ इस प्रकार है। लेपकृत - अन्नादि लेप से युक्त जल को लेपकृत कहते हैं 1 अलेपकृत - लेप से रहित, अर्थात् जिसका पात्र में लेपन लगता हो, ऐसे पात्र का पानी । अच्छ स्वच्छ या निर्मल प्रासुक जल । बहल - कलुषित, अर्थात् धुंधला पानी । ससिक्थ अन्न के कणों से युक्त पानी असिक्थ I धोवन - जल, जिसमें अन्न के कण नहीं हों । अनेक प्रकार के प्रासुक - जल होने से पानक सम्बन्धी ये प्रत्याख्यान मात्र साधुओं के लिए ही होते हैं । अन्य गच्छों में श्रावकों के लिए भी इन छः अपवादों (आगारों) का निर्देश दिया गया है। दिवसचरिम एवं भवचरिम सूत्र दिवसचरिम या भवचरिम प्रत्याख्यान में चार अपवाद (आकार) होते हैं । इसका सूत्र इस प्रकार है “दिवसचरिमं भवचरिमं वा पच्चक्खामि तिविहंपि चउव्विहं पि वा असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि ।" भावार्थ अन्न कणों से रहित, अर्थात् छना हुआ - ― दिवसचरम (अथवा भवचरम का ) व्रत ग्रहण करता हूँ, फलतः अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों प्रकार के आहार का, अथवा अशन, खादिम और स्वादिम इन तीन प्रकार के आहार का अनाभोग, सहसाकार, महत्तराकार और सर्वसमाधिप्रत्ययाकार चार अपवादों (आकारों) के सिवाय पूर्णतया त्याग करता हूँ । इन विशिष्टार्थ Jain Education International - - दिवसचरिम - दिवस का अन्तिम भाग । — For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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