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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४) 212 1 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि कत्था) आदि का ग्रहण किया गया है । मधुयष्टी, पीपल एवं सौंठ आदि इनकी व्याख्या भी जगप्रसिद्ध है । यहाँ आदि शब्द द्वारा त्रिफला, सुपारी, लवंग, इलायची, जायफल आदि सभी शुष्क पुष्प, पत्र एवं फल आदि जो देहपुष्टि करने वाले नहीं हैं, उन्हें स्वादिम कहते हैं । स्वादिम अनेक प्रकार के होते हैं । मुख को सुगन्धित करने के लिए तथा आनंद के लिए जिन पदार्थों को चूसकर स्वाद लिया जाता है, उन्हें स्वादिम कहते हैं । नियम का भंग होने पर उससे लगने वाले दोष के निवारण के लिए अपवाद (आकार) को ग्रहण करते हैं । अणाभोगेणं - स्वयं की इच्छा से, अर्थात् लगनपूर्वक किसी कार्य को करना आभोग कहलाता है तथा उसकी विपरीत स्थिति होने पर, अर्थात् विस्मृतिपूर्वक या व्यवधानपूर्वक कार्य करना अणाभोग कहलाता है । -- सहसाकार अचानक या उत्सुकतापूर्वक किसी कार्य को करने से, अथवा कार्य की उत्पत्ति स्वयमेव होने से, अर्थात् पवन आदि से आहत होकर मुख में कुछ गिर जाने पर जो दोष लगता है; उस दोष के निवारणार्थ जो आकार रखते हैं; उसे सहसाकार कहते हैं । इस प्रकार इस प्रत्याख्यान में दो अपवाद (आकार) होते हैं - १. अनाभोग एवं २. सहसाकार । पौरुषीसूत्र - प्रकार है - पौरुषी प्रत्याख्यान में छः आकार होते हैं । इसका सूत्र इस "पोरसियं पच्चक्खाहि उग्गए सूरे चउव्विहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्थऽणाभोगेणं सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं सव्व समाहिवत्तियागारेणं वोसिरामि । " भावार्थ - पौरुषी का प्रत्याख्यान करता हूँ । सूर्योदय से लेकर अशन, पान, खादिम एवं स्वादिम - चारों ही आहार का प्रहर दिन चढ़े तक अनाभोग, सहसाकार, प्रच्छन्नकाल, दिशामोह, साधुवचन एवं सर्वसमाधि For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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