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आचारदिनकर (खण्ड-४)
193 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि "इंगाली वण साडी, भाडी, फोडी सुवज्जए कम्म।
वाणिज्जं चेव दंत लक्ख रस केस विस विसयं ।।२२ ।। एवं खु जंत पिल्लण-कम्मं निल्लंछणं च दव दाणं।
सरदह तलाय सोसं, असई पोसं च वज्जिज्जा।।२३।। भावार्थ -
___ इन गाथाओं में पन्द्रह कर्मादान, जो बहुत सावध होने के कारण श्रावक के लिए त्यागने योग्य हैं, उनको त्यागने के लिए कहा गया है -
१. अंगारजीविका - जिसमें भट्टी का उपयोग मुख्य होता हो - ऐसे व्यापारों द्वारा जीविका में निम्न कार्यों का समावेश होता हैं - १. भडभुजे का काम २. कुम्भकार का काम ३. स्वर्णकार का काम ४. लोहकार का काम ५. कांस्यकार का काम ६. ईंट पकाने का काम आदि।
२. वनजीविका - इस कर्म में पुष्प, पत्र, फल आदि का छेदन, भेदन करके तथा उनका विक्रय करके जीविका का उपार्जन किया जाता है। धान्य को दलने-पीसने के कार्य को भी इसी कर्म में समाविष्ट किया गया है।
३. शकटजीविका - जिसमें गाड़ी तथा उनके भागों को बनाकर जीविका का उपार्जन किया जाए, उसे शकटजीविका कहते हैं, जैसे - गाड़ी के यंत्र आदि बनाकर बेचना।
४. भाटकजीविका - भार का वहन करने वाले ऊँट, अश्व, बैल आदि किराए पर देकर उससे अपनी आजीविका चलाए, उसे भाटकजीविका कहते हैं।
५. स्फोटकजीविका - पत्थर आदि फोड़कर आजीविका चलाने को स्फोटकजीविका कहते हैं, जैसे - तालाब, कुएँ आदि खोदना, शिलाएँ तोड़ना आदि व्यापार। ये कर्म श्रावक हेतु पूर्ण रूप से वर्जित कहे गए हैं।
६. दंतवाणिज्य - पशुओं के दाँत, केश, नख, चर्म, रोम आदि वस्तुओं का व्यापार दंतवाणिज्य कहलाता है।
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