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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) _149 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि । उन महामुनिवरों का मंगल करके मैं भी मोक्षमार्ग की आराधना के सम्मुख हुआ हूँ।।२।। अरिहंत, पन्द्रह प्रकार के सिद्ध, साधु, श्रुतागम तथा यति एवं श्रावक के आचाररूप धर्म, क्षमा (क्रोधत्याग), मन, वचन एवं काया का गोपन, लोभत्याग, मायात्याग एवं मानत्याग, निश्चय से - ये दस पद मेरा मंगल करने वाले हों।।३।। कर्मभूमिरूप लोक में, संयम के आराधक मुनिजन पूर्वमुनियों द्वारा कथित, सर्वोत्कृष्ट जिन पाँच महाव्रतों का जो उच्चारण करते हैं, उन पाँच महाव्रतों का उच्चारण करने के लिए मैं भी उद्यमवान् हुआ हूँ।।४।। विशिष्टार्थ - पाक्षिकसूत्र के प्रारम्भ में सर्वप्रथम मंगलाचरण एवं कार्य की सिद्धि के लिए अर्हत् एवं सिद्ध परमात्मा को नमस्कार किया गया है। यहाँ “अहं वन्दे " क्रिया पद है, जिसका प्रथम गाथा में सर्वत्र प्रयोग करना है। २. तीसरी गाथा के माध्यम से स्वयं के मंगल की एवं जिनधर्म की प्राप्ति की कामना की गई है। ३. चौथी गाथा के माध्यम से महाव्रतों के उच्चारण का सूचन किया गया है। “से किं तं महव्वयउच्चारणा ? महब्वय उच्चारणा पंचविहा पण्णत्ता राइभोअणवेरमण छट्ठा, तं जहा सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ मुसावायाओ वेरमणं, सव्वाओ अदिन्नादाणाओ वेरमणं, सव्वाओ मेहुणाओ वेरमणं, सव्वाओ परिग्गहाओ वेरमणं, सव्वाओ राइभोअणाओ वेरमणं।" भावार्थ - उन महाव्रतों का ग्रहण कितने प्रकार का है ? तो कहते हैं कि महाव्रतों का ग्रहण पाँच प्रकार का कहा गया है तथा रात्रिभोजन का त्याग करना यह छठवां व्रत है। वे इस प्रकार हैं - १. सर्वप्रकार के स्थावर एवं सूक्ष्म जीवों की विराधनारूप जीव-हिंसा, अर्थात् प्राणातिपात से विरत होना २. हास्य, लोभ आदि के कारण होने वाले सर्वप्रकार के असत्य भाषण (मृषावाद) का त्याग करना ३. सर्वप्रकार की चोरी करने रूप अदत्तादान से विरत होना ४. स्त्री-पुरुष के दैहिक सम्बन्ध का पूर्ण रूप से त्याग करना ५. सर्वप्रकार के परिग्रह एवं मूर्छा से अलग होना एवं ६. मात्र पवन को ग्रहण करने के सिवाय सर्वप्रकार के रात्रिभोजन का त्याग करना। (यहाँ विरत होने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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