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________________ आचारदिनकर (खण्ड- ४) भत्तकहाए से षड्रस विरस आहार की निन्दा करना । देसकहाए - नाना प्रकार के देशों के व्यक्तियों, उनके आचार एवं वस्तुओं की प्रशंसा या निंदा करना । रायकहाए राजा के प्रताप की प्रशंसा या उसकी अकर्मण्यता की निंदा करना । “पडिक्कमामि चउहिं झाणेहिं-अट्टेणं झाणेणं, रूद्देणं झाणेणं, धम्मेणं झाणेणं, सुक्केणं झाणेणं ।" भावार्थ - - आर्त्तध्यान, रौद्रध्यान, धर्मध्यान और शुक्लध्यान इन चारों ध्यानों से, अर्थात् आर्त्त - रौद्र - ध्यान के करने से तथा धर्म - शुक्ल - ध्यान के न करने से जो भी अतिचार लगा हो, उसका मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । विशिष्टार्थ - - झाणेहिं सप्त तत्त्वों के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार का जो - - 125 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि युक्त चतुर्विध आहार की प्रशंसा या चिन्तन होता है, उसे ध्यान कहते हैं । अट्टेणं आर्त्तध्यान करना । - Jain Education International रूद्देणं - परद्रोह के चिन्तनरूप रौद्रध्यान करना । - धम्मेणं - आज्ञा, अपाय, विपाक एवं संस्थान का चिन्तन करना | सुक्केणं शुभ और अशुभ में अतिक्रान्त जो निर्विकल्प चेतना है, वह शुक्लध्यान है । यह शुक्लध्यान भी चार प्रकार का कहा गया है, जिसकी विस्तृत चर्चा तत्त्वार्थ में की गई है। उस प्रकार का शुक्ल ध्यान करना । "पडिक्कमामि पंचहिं किरियाहिं-काइआए अहिगरणियाए पाउसियाए पारितावणियाए पाणाइवाय - किरियाए । “ भावार्थ दुःख, कष्ट, पर की आकांक्षा आदि दुःखरूप कायिकी, अधिकारणिकी, प्राद्वेषिकी, पारितापनिकी और प्राणातिपात- क्रिया इन- पाँचों क्रियाओं द्वारा जो भी अतिचार लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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