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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) . 113 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि हुआ हूँ। आपके श्रामण्य, तप और तेजरूपी लक्ष्मी द्वारा चारगतिरूप संसार-अटवी में भ्रमण करती हुई मेरी आत्मा का संहरण करके मैं इस संसाररूपी अटवी को पार करूंगा। इस हेतु मैं आपको मन-वचन एवं काया से मस्तक झुकाकर तीन बार वन्दन करता हूँ। यहाँ गुरु कहते हैं - "तुम संसार-सागर को पार करने वाले होओ।" ये चार क्षमापना बताई गई हैं। अब प्रतिक्रमण-आवश्यक की व्याख्या करते हैं - यह व्याख्या प्रतिक्रमण के विधि-सूत्रपूर्वक कही जाएगी। सर्वप्रथम नमस्कारमंत्र पढ़े। तत्पश्चात् “चत्तारि मंगलं से लेकर केवलिपन्नत्तं धम्म सरणं पवज्जामि" तक का मंगल पाठ बोले। सभी इस पाठ को बोलते हैं। इसका अर्थ प्रसिद्ध है, इसलिए इसकी व्याख्या यहाँ नहीं की गई है। तत्पश्चात् “इच्छामि पडिक्कमिउं जो मे देवसिओ" से लेकर “जं विराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं" तक आलोचना-पाठ बोलें। - इस सूत्र की व्याख्या पूर्ववत् ही है। इसके बाद "इच्छामि पडिक्कमिउं इरिया" से लेकर "तस्स मिच्छामि दुक्कडं" तक इरियावहियंसूत्र बोलें - इस सूत्र की व्याख्या भी पूर्व में की गई है। अब सर्वप्रथम शयन-अतिचार-प्रतिक्रमण की विधि बताते हैं। उसका सूत्र इस प्रकार है - "इच्छामि पडिक्कमिउं पगामसिज्जाए, निगामसिज्जाए, उव्वट्टणाए, परिवट्टणाए, आउंटणाए, पसारणाए, छप्पइयसंघट्टणाए, कूइए, कक्कराइए, छीए, जंभाइए, आमोसे, ससरक्खामोसे, आउलमाउलाए, सोअणवत्तियाए, इत्थीविप्परियासियाए, दिट्ठिविपरियासियाए, मणविपरियासियाए, पाणभोयणविपरियासियाए जो मे देवसिओ अइयारो कओ, तस्स मिच्छामि दुक्कडं। भावार्थ - शयन-सम्बन्धी प्रतिक्रमण करना चाहता हूँ। शयनकाल में यदि बहुत देर तक सोता रहा हूँ तथा बार-बार बहुत देर तक सोता रहा हूँ, अयतना के साथ एक बार करवट ली हो तथा बार-बार बहुत-बहुत करवट ली हो, हाथ-पैर आदि अंग अयतना से समेटे हों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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