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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 66 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि केवली - केवलज्ञान प्रकटरूप से रहा हुआ होने के कारण उन्हें केवली कहा गया है। उसभ - जो मोक्ष में जाता है, वह ऋषभ। सभी केवली मोक्ष में जाते हैं, किन्तु इस अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम ऋषभदेव मोक्ष में गए हैं, ऐसे ऋषभदेव को। मजिअं - जो राग-द्वेष आदि दोषों से नहीं जीते गए हैं, ऐसे अजितनाथ को। संभव - जिनके द्वारा मोक्षरूपी सर्व श्रेष्ठदान संभव होता है, ऐसे संभवनाथ को। ___अभिनंदन - जो विश्व के जीवों को अभिनंदित (हर्षित) करने वाले हैं, ऐसे अभिनंदन स्वामी को। सुमइ - जिनकी शुभमति है तथा सर्वजीवों को अभय प्रदान करने की जिनकी सुमति है, ऐसे सुमतिनाथ को। पउमपप्पहं - लाल रंग, सुगन्ध एवं कीचड़ का त्याग करने से जिनमें पद्म के समान ही कान्ति रही हुई है, ऐसे पद्मप्रभस्वामी को।। सुपासं - गणधर एवं संघ से जिनके दोनों पार्श्व सुशोभित हैं, ऐसे सुपार्श्वनाथ भगवान् को। जिणं - जिन्होंने राग-द्वेषरूपी शत्रुओं को जीता है, ऐसे जिन को। ___चंदप्पहं - चन्द्र के समान जिनकी प्रभा है, ऐसे चन्द्रप्रभस्वामी को । वंदे - वन्दन करता हूँ, नमस्कार करता हूँ। सुविहिं - जिनकी विधि सुन्दर है, ऐसे सुविधिनाथ को। पुप्फदंत - पुष्प के समान जिनके दाँत हैं, ऐसे पुष्पदंत को। सीअल - संसार के ताप से संतप्त जीवों को शीतलता देने वाले हैं, ऐसे शीतलनाथ को। सिज्जं स - प्रकृष्टरूप से जो कल्याणकारी हैं, ऐसे श्रेयांसनाथ को। वासुपूज्जं - वसुपूज्य की जो संतान हैं, ऐसे वासुपूज्यस्वामी को। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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