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आचारदिनकर (खण्ड-४)
58 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि साधुओं का स्मरण करते हैं - इन पाँच हेतुओं से ही पंचविध परमेष्ठीमंत्र का स्मरण किया जाता है।
___ महामंत्र के प्रभाव को बताने के लिए निम्न पाँच दृष्टान्त बताए गए हैं -
इहलोक सम्बन्धी - १. त्रिदंडी २. सादित्व एवं ३. मातुलिंग का
परलोक सम्बन्धी - १. चंडपिंगल एवं २. हुंडिययक्ष का
आचारशास्त्र में इसे इसी विधि या क्रम से कहा गया है - इनके पूर्ण कथानक महागम, अर्थात् भगवतीसूत्र की टीका से जानें। यहाँ इसके विधिक्रम को ही बताया गया है। पूर्व में सामायिक-दण्डक में कहा गया है, कि सामायिक से सावद्य-प्रवृत्तियों से विरति होती है
और इसी प्रकार परमेष्ठीमंत्र के नवपदों से पग-पग पर संपदा की प्राप्ति होती है।
अब चतुर्विंशतिस्तव नामक दूसरे आवश्यक का स्वरूप बताते
चतुर्विंशतिस्तव में क्रमशः शक्रस्तव एवं भगवत्-प्रार्थना का कथन किया गया है। यहाँ सर्वप्रथम शक्रस्तव की व्याख्या करते हैं -
“नमोत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं ।।१।। आइगराणं तित्थयराणं सयं-संबुद्धाणं ।।२।। पुरिसुत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसवरपुंडरीआणं पुरिसवरगंधहत्थीणं ।।३।। लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहिआणं लोगपईवाणं लोगपज्जोअगराणं ।।४।। अभयदयाणं चक्खुदयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं बोहिदयाणं ।।५।। धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीणं धम्मवरचाउरंत चक्कवट्टीणं।।६।। अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं विअट्टछउमाणं ।।७।। जिणाणं जावयाणं तिन्नाणं तारयाणं बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोअगाणं ।।८।। सव्वन्नूणं सव्वदरिसीणं सिव मयल मरूअ मणंत मक्खय मव्वावाह मपुणरावित्ति सिद्धिगइ नामधेयं ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जिअभयाणं ।।६।। जे अ अईआ सिद्धा, जे अ भविस्संतिऽणागए काले संपइ, अ वट्टमाणा सव्वे तिविहेण वंदामि।।१०।।
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