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________________ आचारदिनकर (खण्ड-४) 57 प्रायश्चित्त, आवश्यक एवं तपविधि गया है। अरिहंत भी लोक में एवं सिद्ध लोकान्त में स्थित हैं, इसलिए भी यहाँ लोक शब्द का ग्रहण किया गया है। सर्व शब्द का ग्रहण केवली एवं छद्मस्थ मुनियों का समावेश करने के लिए किया गया है। ऐसे नाम, स्थापना, द्रव्य, भावरूप पंचपरमेष्ठियों को मन-वचन-काया से नमस्कार हो। ___"इन पाँचों को किया गया नमस्कार सर्वपापों का नाश करने वाला है तथा सभी मंगलों में प्रथम मंगल है"- यहाँ इस पद का ग्रहण पूर्वोक्त पद के महत्त्व को विवेचित करने के लिए किया गया है। इन पंचपरमेष्ठियों को किया गया नमस्कार सर्वपापों का नाश करने वाला है तथा इसके स्मरणमात्र से ही पाप दूर हो जाते हैं। जैसा कि कहा गया है - "नमस्कारमंत्र का एक अक्षर सात सागरोपम के पाप का नाश करता है, नमस्कारमंत्र का एक पद पचास सागरोपम के पाप का नाश करता है तथा सम्पूर्ण नमस्कारमंत्र पाँच सौ सागरोपम के पाप का नाश करता है।" इन पाँच परमेष्ठियों को किया गया नमस्कार सर्वपापों का नाश करने वाला है। इस महामंत्र का आराधन करने से दुःखदायक पापों का नाश होता है, संपदा की प्राप्ति होती है तथा जीव अपने स्वस्वभाव की प्राप्ति कर लेता है। हजारों पाप करने वाले तथा सैंकड़ों जंतुओं का नाश करने वाले तिर्यंच भी इस नमस्कारमंत्र का विधिपूर्वक आराधन करके मोक्षपद को प्राप्त हुए हैं और यह मंत्र सभी मंगलों में प्रथम मंगल है। जैसा कि आगम में कहा गया है - “मनुष्य, असुर (व्यंतर आदि), सुर (देवता), खेचर आदि संसार के सभी प्राणियों के मंगल का हेतु होने से इसे सर्वमंगलों में प्रथम महामंगल कहा गया है।" इस मंत्रराज के प्रभाव को कहने में कौन सक्षम है ? अर्थात् कोई समर्थ नहीं है। पाँच हेतुओं से युक्त होने के लिए अर्हत् आदि पाँच सर्वश्रेष्ठ पदों का स्मरण किया जाता है। वे पाँच हेतु निम्न हैं - १. मार्ग को जानने के लिए अरिहंतों का २. सर्वकर्मों का क्षय करने के लिए सिद्धों का ३. आचारमार्ग में प्रवृत्ति करने के लिए आचार्यों का ४. विनय, अर्थात् आचारमार्ग को जानने के लिए उपाध्यायों का एवं ५. स्वभाव में रमण करने हेतु www.jainelibrary.org Jain Education International . For Private & Personal Use Only
SR No.001678
Book TitlePrayaschitt Avashyak Tap evam Padaropan Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMokshratnashreejiji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages468
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Principle, Ritual, Vidhi, M000, & M010
File Size7 MB
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