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जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 457
गन्धप्रिय की कथा संवेगरंगशाला में गन्धप्रिय का यह कथानक घ्राणेन्द्रिय के विषयों में आसक्त होने का क्या परिणाम होता है, उसको बताता है:-820
एक नगर में एक गन्धप्रिय राजकुमार रहता था। वह जिन पदार्थों को देखता था, उन सबको सूंघता रहता था। किसी समय अपने मित्रों के साथ वह नाव में बैठकर नदी के जल में क्रीड़ा कर रहा था। उसे इस प्रकार क्रीड़ा करते हुए जानकर अपने पुत्र को राज्य देने की इच्छा से उसकी सौतेली माता ने उसे मारने की सोची। सौतेली माता ने अति कुशलता से पेटी में जहर रखकर, उस पेटी को नदी में बहते छोड़ दिया। नदी में क्रीड़ा करते हुए राजकुमार ने पेटी को आते देखा और उसे बाहर निकालकर खोला, उसमें रखा हुआ एक डिब्बा देखा, तो उसे भी खोला। डिब्बे में एक गठरी थी। गठरी को खोलकर राजकुमार ने उसमें रखे जहर को सूंघा और सूंघते ही वह गन्धप्रिय राजकुमार उसी समय मर गया।
संवेगरंगशाला में इस कथा के द्वारा यह बताया गया है कि जिस प्रकार कमल की सुगन्ध में फँसा भ्रमर सन्ध्या होने पर कमल की पंखुड़ियों में कैद हो जाता है एवं प्रातः सरोवर पर आनेवाले हाथियों के पैरों तले कुचला जाता है, उसी प्रकार घ्राणेन्द्रिय के विषय में आसक्त बना जीव विनाश को प्राप्त होता है। प्रस्तुत सन्दर्भ में संवेगरंगशाला में गन्धप्रिय राजकुमार का दृष्टान्त दिया गया है।
___ यह दृष्टान्त हमें आवश्यकचूर्णि (भाग-१, पृ. ५३३) तथा आचारांगवृत्ति (पृ. १५४) में मिलता है।
सोदास की कथा संवेगरंगशाला में सोदास राजा का यह कथानक रसनेन्द्रिय के विषयों में आसक्त होने का क्या परिणाम होता है, उसे बताता है:-821
भूमि प्रतिष्ठित नगर में मांस का अत्यन्त शौकीन सोदास नाम का राजा था। उसने सारे नगर में अमारि, अर्थात् अहिंसा की उद्घोषणा करवाई थी, परन्तु वह स्वयं गुप्त रूप से मांस खाता था। एक दिन रसोइए की अनुपस्थिति में एक
संवेगरंगशाला, गाथा ६०७७-९०८२. 821 संवेगरंगशाला, गाथा ६०६४-६०६५.
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