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________________ जैन धर्म में आराधना का स्वरूप / 311 उल्लेखित हैं। गवेषणात्मक-दृष्टि से ऐसा करते हुए हमें यह ज्ञात हुआ है कि संवेगरंगशाला में वर्णित इन कथाओं में से अधिकांश कथाएँ पूर्ववर्ती ग्रन्थों में उल्लेखित हैं, यद्यपि तुलनात्मक दृष्टि से विवेचन करते समय हमें यह स्पष्ट रूप से ज्ञात होता है कि जिनचन्द्रसूरि ने संवेगरंगशाला में इन कथाओं को जितना विस्तार दिया है, उतना विस्तार पूर्ववर्ती ग्रन्थों में नहीं दिया गया है। ऐसा लगता है कि श्रुत-परम्परा से आई इन कथाओं को जिनचन्द्रसूरि ने अधिक विस्तृत किया है, अतः इस अध्याय में हमने प्रत्येक कथा के अन्त में यह बताने का प्रयास किया है कि प्रस्तुत कथा पूर्ववर्ती ग्रन्थों में कहाँ-कहाँ उपलब्ध है। यद्यपि यहाँ हम कथाओं का तुलनात्मक-विवेचन ही करना चाहते थे, किन्तु प्रथम तो विस्तारभय से और दूसरे अधिकांश पूर्ववर्ती ग्रन्थों में कथा का मात्र नाम-निर्देश होने से हम कथा के तुलनात्मक-विवेचन के सम्बन्ध में अधिक विस्तार में नहीं गए। कहीं-कहीं अवश्य ही हमें घटनाक्रम में अन्तर भी देखने को मिला है। कुछ कथाओं में जिनचन्द्रसूरि व्यक्ति के नाम का निर्देश भी न करके मात्र श्रावकपुत्रों की कथा, ब्राह्मणपुत्र की कथा जैसे संकेतों का ही प्रयोग किया गया है। हमें ऐसा लगता है कि कथाओं के विवेचन में जिनचन्द्रसूरि ने पूर्ववर्ती ग्रन्थों की अपेक्षा परम्परा से प्राप्त अनुश्रुति को ही महत्व दिया है। ग्रन्थ का कथापक्ष शोध की दृष्टि से उपेक्षित न रहे, इसे लक्ष्य में रखकर ही प्रस्तुत अध्याय में सन्दर्भ का निर्देश करते हुए कथा को प्रस्तुत किया है और उसके पश्चात् वह कथा पूर्ववर्ती ग्रन्थों में कहाँ उपलब्ध होती है, इसका निर्देश भी किया गया है। हमें आशा है कि प्रस्तुत विवेचन कथा-साहित्य के विषय में शोध करनेवालों के लिए अधिक उपयोगी होगा। इसी विश्वास के साथ अग्रिम पृष्ठों पर क्रमशः कथाओं को प्रस्तुत किया जा रहा है। यहाँ कथाओं के क्रम के सम्बन्ध में संवेगरंगशाला को ही आधार मानकर, उसमें जिस क्रम से कथाएँ मिलती हैं, उसी क्रम का अनुसरण किया गया है। मधु राजा की कथा संक्षिप्त आराधना के स्वरूप के विषय में संवेगरंगशाला में मधुराजा का दृष्टान्त उपलब्ध होता है, वह इस प्रकार है747 : मथुरा नगरी में मधु नाम का राजा राज्य करता था। एक दिन, राजा क्रीड़ा कर रहा है। ऐसा जानकर शत्रु राजा ने अपनी विशाल सेना द्वारा राज्य को घेर लिया तथा मधु राजा को युद्ध के लिए ललकारा। उसकी ललकार सुनकर 747 संविमरंगशाला, गाथा ६४२-६६७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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