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________________ अध्याय - ४ समाधिमरण की आराधना विधि २३३ २३७ संक्षिप्त विशेष आराधना (तात्कालिक समाधिमरण की साधना) का स्वरूप २०८ विस्तृत आराधना (दीर्घकालिक समाधिमरण की साधना) का स्वरूप २०६ परगण संक्रमण-विधि २१० निर्यापक आचार्य की खोज २१२ निर्यापक आचार्य (सुस्थित) २१३ निर्यापक आचार्य द्वारा स्वगण के साधुओं की सम्मति प्राप्त करना (प्रतीच्छा)२१६ क्षपक का परगणप्रवेश (उपसम्पदा) २२० निर्यापक आचार्य द्वारा क्षपक को हितशिक्षा (अनुशास्ति) २२१ अठारह पापों का स्वरूप और क्षपक द्वारा उनका त्याग २२२ समाधिमरण में की जानेवाली तपाराधना की विधि तपाराधना क्यों? तप के प्रकार क्षपक की आराधना के मूल कर्तव्य-आलोचना और प्रायश्चित्त २४० समाधिमरण में आसक्ति-विमुक्ति का उपाय, बारह भावनाएँ २५६ भावना (चार) २६३ दुष्कृत गर्दा सुकृत अनुमोदना २६० क्षमापना २६२ समाधिमरण में चार शरण की स्वीकृति २६४ समाधिमरण में इन्द्रियदमन की आवश्यकता २६६ समाधिमरण का मुख्य लक्ष्य कषायजय २६७ लेश्या ३०१ २३८ २८८ ध्यान ३०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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