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________________ ७१ ७२ 93 ७५ अध्याय - २ संवेगरंगशाला में सामान्य आराधना का स्वरूप (गृहस्थधर्म और मुनिधर्म) आराधना का स्वरूप एवं प्रकार जैन-धर्म का सामान्य साधनामार्ग आराधक की योग्यता (अर्हता) गृहस्थ और मुनिजीवन के लिए सामान्य शिक्षा गृहस्थ धर्म :सप्तदुर्व्यसन-त्याग और अष्ट मूलगुणधारण श्रावक के मार्गानुसारी गुण श्रावक के षटावश्यक कर्तव्य श्रावक के दान के दस क्षेत्र श्रावक के व्रत श्रावक की ग्यारह प्रतिमाएँ आराधक गृहस्थ की पहचान (लिंग) संवेगरंगशाला में वर्णित गृहस्थ का आध्यात्मिक चिन्तन मुनिधर्म :श्रमणजीवन का सामान्य स्वरूप श्रमणधर्म का आधारः पंचमहाव्रत अष्टप्रवचन माता (पाँच समिति और तीन गुप्ति) दसविध मुनिधर्म परीषह दसविध सामाचारी बारह प्रकार के तप षटावश्यक साधु की दिनचर्या साधु के सामान्य लिंग १०१ १०४ १०५ १०६ १०७ ११६ १२० १२६ १२६ १३० १३६ १४२ १४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001677
Book TitleJain Dharma me Aradhana ka Swaroop
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadivyanjanashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2007
Total Pages540
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Worship
File Size9 MB
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