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162 / साध्वी श्री प्रियदिव्यांजनाश्री सोते हुए बिना किसी निमित्त के अचानक भूमि में ज्वालाएँ उठती दिखाई दे, अथवा भूमि फटकर चकनाचूर होती दिखाई दे, अथवा किसी के रुदन की आवाज (शब्द) सुनाई दे, तो उसकी छ: मास में मृत्यु होती है। दृष्टिभ्रमवश जिसे अन्य के मस्तक पर धुआँ, अथवा केशराशि में अग्नि दिखाई दे एवं कुत्ते की हड्डी या मृतक के अवयव को जो घर में रखे, तो उससे भी व्यक्ति का मरण होता है। 302
इसमें आगे ग्रन्थकार ने यह उल्लेख किया है - "यदि जिसे स्वच्छ आकाश में भी संगीत की ध्वनि सुनाई दे, तो उसे रोग उत्पन्न होता है एवं वाद्ययन्त्र की आवाज आने से निश्चित मृत्यु होती है- ऐसा जानना चाहिए। व्यक्ति यदि आकाश में एकसाथ दो चन्द्र को देखता है, तो वह यमलोक जाने की तैयारी करता है। यदि जीभ के अन्तिम भाग में काले बिन्दु को देखता है तथा बिना कारण उसका स्वर-परिवर्तन हो जाता है, तो निःसन्देह वह अन्य काया में प्रवेश करनेवाला है"303 - ऐसा जानना चाहिए।
संवेगरंगशाला के निमित्तद्वार के अन्त में यह निरूपण किया गया है - "जिस उत्तम पुरुष के ललाट पर दीर्घ (लम्बी) एवं स्थूल एक, दो, तीन, चार, अथवा पाँच रेखाएँ हों, तो वह अनुक्रम से तीस, चालीस, साठ, अस्सी एवं सौ वर्ष तक सुन्दर जीवन यापन करता है। यदि बिना किसी निमित्त के विकार पैदा होता हो, कम्पन होता हो, पसीना आता हो, थकावट लगती हो एवं उपचार करने पर भी अल्प-लाभ भी नहीं होता हो, तो वह व्यक्ति तत्काल मृत्यु को प्राप्त करता है- ऐसा जानना चाहिए।"304
६. ज्योतिषद्वार :- संवेगरंगशाला में ज्योतिषद्वार का विवेचन करते हुए यह कहा गया है कि “सर्वप्रथम एक शनिश्चर पुरुष की आकृति को बनाए, उसके पश्चात निमित्त देखते समय जिस नक्षत्र में शनि हो, उस नक्षत्र को मुख (मध्य) में स्थापित करे। फिर क्रमशः चार नक्षत्र दाँए हाथ में, तीन-तीन नक्षत्र दोनों पैरों में चार बाँए हाथ में, पाँच नक्षत्र हृदय में, तीन नक्षत्र मस्तक में, दो-दो नक्षत्र दोनों नेत्रों में और एक नक्षत्र गुह्यस्थान में- इस तरह सत्ताईस नक्षत्र स्थापित करे। इस प्रकार शनिश्चर पुरुष-चक्र में नक्षत्रों की स्थापना करके उसमें जन्म एवं नाम नक्षत्र को देखे। यदि निमित्त-ज्ञान प्राप्त करते समय शनि-पुरुष गुह्यस्थान में आया हो एवं उस पर दुष्ट ग्रहों की दृष्टि गिरती हो, अथवा उनके साथ मिलाप होता हो तथा सौम्यग्रहों की दृष्टि नहीं गिरती हो, अथवा मिलाप नहीं
302 संवेगरंगशाला, गाथा ३१३३-३१२६. 303 विंगरंगशाला, गाथा ३१५३-३१५६. 304 विंगरंगशाला, गाथा ३१६१-३१६५.
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