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अलोकाकाश । 4. काल अर्थात् समय दिखाने वाला द्रव्य इसके दो भेद : निश्चय और व्यवहार । 5. पुद्गल अर्थात् रूपी द्रव्य (जो वस्तुएँ आखों को दिखाई देती हैं, उन्हें रूपी कहते हैं उदा० सन्दूक 1) इस चित्र से अजीव की पाँच प्रकारों की कल्पनाएँ स्पष्ट होती
3. आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष तत्त्व : चिक्र क्र0 3 : बंधमुक्ति प्रक्रिया
इस चित्र में आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा और मोक्ष ये पाँच तत्त्व नौका की कल्पना द्वारा स्पष्ट किए गये हैं । पहली नौका द्वारा आस्रव और बंध तत्त्व स्पष्ट किए गये हैं । . आस्रव की कल्पना छिद्र द्वारा नौका में आनेवाले पानी से की गई है । (आत्मा में कर्मप्रवेश होना) । बंध की कल्पना नौका में छिद्र द्वारा संचित हुए पानी द्वारा बताई गई है । आत्मा में आस्रव द्वारा आए हुए संचित कर्म । ।
दूसरी नौका द्वारा संवर की कल्पना को स्पष्ट किया गया है । नौका में पड़े हए छिद्र को काक-बूच लगाकर बंद किया है । (आत्मा में आस्रव द्वारा आने वाले कर्मों को संवर रूपी बूच लगाकर बंद करने चाहिए ।)
तीसरी नौका द्वारा निर्जरा की कल्पना को स्पष्ट किया गया है । इस चित्र में नौका को पूर्णतया पानी से रहित बताया गया है और नौका किनारे लगी है । (आत्मा के सारे कर्म नष्ट हो गए हैं, उसने संसाररूपी सागर को पार किया है और मोक्ष-महल को प्राप्त कर लोकाग्र भाग पर स्थित हुआ है ।) । 4. संवर तत्त्व-चित्र क्र0 4-अनित्य भावना :
संवर तत्त्व में बारह भावनाएँ हैं । उनमें से अनित्य भावना एक है जिसे स्पष्ट करने के लिए यह चित्र दिया गया है । बाह्य अर्थात् भौतिक संपत्ति, सुंदर घर, हाथी अर्थात् संपत्ति, पशुधन, सुंदर पत्नी, दीवानजी, नौकर-चाकर, इतना सब उपलब्ध होते हुए भी ये सारी बातें अनित्य हैं । क्योंकि जब मनुष्य का प्राणरूपी पक्षी उड़ जाता है, तब कोई भी साथ नहीं आता । सारी भौतिक संपत्ति इहलोक में रहती है । इससे अनित्य भावना की कल्पना स्पष्ट होगी । 5. निर्जरा तत्त्व-चित्र क्र05-बाह्य तप और आभ्यन्तर तप :
निर्जरा तत्त्व में तप के बारह भेद बताए गए हैं । इस चित्र में छह बाह्य और छह आभ्यन्तर तप दिखाए गए हैं । इसके अलावा आभ्यंतर तप एक एक भेद ध्यान के1 आर्त ध्यान, 2 रौद्र ध्यान, 3 धर्म ध्यान, और 4 शुक्ल ध्यान ऐसे चार भेद बताए हैं । इन चार ध्यानों में से धर्म और शुक्ल ध्यान श्रेष्ठ हैं और उसीसे मोक्ष प्राप्ति होती
6. बंध तत्त्व : चित्र क्र0 6-बंध और कर्म : इस चित्र में बंध के और कर्म के भेद बताए गये हैं । बंध के चार भेद हैं
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