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________________ AN रामचंदजी शिंगवी कस्तूरबाई शिंगवी शोधार्थी डॉ0 धर्मशीलाजी म० श्रीजी के माता-पिता का परिचय डॉ0 धर्मशीलाजी म० श्रीजी की माता श्रीमती कस्तूरबाई और पिताश्री रामचंदजी शिंगवी थे । आप का जीवन करुणा, मानवता, अनुकम्पा से भरा पुरा था । अपनी संतानों में संस्कार देने का काम उन्होंने बचपन से ही किया । “सादा जीवन, उच्च विचार' ऐसा उनका जीवन था । वे स्वयं वैसा जीवन जिए और अपनी संतानों को वैसा जीवन जीना सिखाया । आपके पांच पुत्रियाँ-बसंतीबाई, जयकवरबाई, कमलबाई, विमलबाई और बदामबाई हैं और तीन पुत्र पोपटलाल, सुबालाल और रमणलाल हैं । विमल बहन ने दीक्षा ग्रहण की तब उनका नाम धर्मशीलाजी रखा गया । माता-पिता ने अपनी लाड़ली, अद्वितीय कन्या को जिन शासन को समर्पित किया । आपश्री ने अपने वक्तृत्व और कर्तृत्व से श्रमण संघ को उज्ज्वल बनाया है । माता-पिता के संस्कारों के कारण ही हम अपने जीवन में धर्म-पथ पर चलने लगे । 'मानव-सेवा यही प्रभुसेवा' 'संतसेवा यही जिन-शासन की सेवा ! इन विचारों को अपने जीवन में उतारने की हमने कोशिश की है । हमारी बड़ी बहन बसंतीबाई ने भी 16 वर्ष पूर्व दीक्षा ग्रहण की । उनका नाम विवेकशीलाजी म० रखा गया । जयकंवरबाई की कन्या मंगला ने भी 16 वर्ष पूर्व दीक्षा ग्रहण की । उनका नाम 'पुण्यशीला' रखा गया । हमारे परिवार में ऐसी तीन दीक्षाएँ हो चुकी हैं । इसका सारा श्रेय हमारे माता-पिता को है । ऐसे दृढ़धर्मी माता-पिता का ऋण हम कभी नहीं चुका सकेंगे । उन्हें हमारे कोटि-कोटि प्रणाम । पोपटलाल, सुवालाल, रमणलाल शिंगवी (१३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
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