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________________ जैन दर्शन के नव तत्त्व परमाणु शाश्वत, परिणामी, नित्य, सावकाश, स्कन्ध का कर्ता तथा भेत्ता ( भेद करने वाला) है। परमाणु कारणरूप है, कार्यरूप नहीं । वह अंतिम, सूक्ष्म तथा नित्य द्रव्य ९० है। परमाणु पुद्गल का एक विभाग है। पुद्गल के दो प्रकार हैं - (१) परमाणु - पुद्गल और नोपरमाणु - पुद्गल । (२) द्वयणुक आदि स्कन्ध । जैन साहित्य में परमाणु का स्वरूप अत्यंत सूक्ष्म कहा गया है। परमाणु अछेद्य है, अभेद्य है और अग्राह्य है । यह बात निम्नलिखित उदाहरण से स्पष्ट होती है - कागज के ढेर में आग लगने पर सारे कागज नष्ट हो जाते हैं और उनकी राख बन जाती है । परन्तु कागज की उत्पत्ति और विनाश में अथवा कागज के पर्यायों के नाश और राख के पर्यायों की उत्पत्ति में परमाणु अपने रूप में विद्यमान रहते हैं । पर्याय, नाम, रूप और गन्ध बदल जाये तो भी परमाणु में कुछ भी फर्क नहीं आता। इसलिए पुद्गल द्रव्य परमाणु के शुद्ध रूप में सदैव बना रहता है। परमाणु शब्दरहित है । शब्द की उत्पत्ति दो पुद्गल स्कन्धों के संघर्ष से होती है । परमाणु स्कन्ध रहित है इसलिए वह शब्दरहित भी है । परमाणु एक होने पर भी मूर्त है। कारण उसमें वर्ण, गन्ध, रस तथा स्पर्श हैं। ये चारों गुण उसके प्रदेश में होते हैं, इसलिए परमाणु मूर्त है, साकार है। पुद्गल स्कन्ध की निर्मित परमाणुओं के समूह से होती है। अगर परमाणु मूर्त न हो तो उससे तैयार हुए पुद्गल - स्कंध भी मूर्त नहीं हो सकते। क्योंकि अमूर्त द्रव्य मूर्त नहीं बन सकता, और मूर्त द्रव्य अमूर्त के रूप में परिणत नहीं हो सकता। कारण यह कि एक द्रव्य अपने स्वभाव को छोड़ कर परभावरूप दूसरे द्रव्य में परिणत नहीं हो सकता । द्रव्यसंग्रह में आचार्य नेमिचन्द्र लिखते हैं 'पुद्गल एक अविभाज्य, परिच्छेद्य परमाणु है । और वह आकाश के एक प्रदेश को व्याप्त कर लेता है । उस प्रदेश में अनन्तानन्त पुद्गल परमाणु भी स्थित हो सकते हैं I जितने पदार्थ आँखों से दिखाई देते हैं, जितने पदार्थों का स्पर्श किया जा सकता है, जितने पदार्थों का स्वाद लिया जाता है और जितने पदार्थों का शब्द सुनाई देता है, वे समस्त पदार्थ पुद्गल हैं । पुद्गल - स्कन्ध में भी अनेक स्कन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001676
Book TitleJain Darshan ke Navtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmashilashreeji
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2000
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size11 MB
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