________________ सम्मतियाँ डा० सागरमल जैन ने जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शन का गम्भीर अध्ययन प्रस्तुत कर धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन को एक नवीन सार्थकता प्रदान की है। इस परिप्रेक्ष्य में लेखक ने जैन, बौद्ध और गीता के अध्ययन में भारतीय संस्कृति के त्रिविध स्रोतों का प्रत्यक्षतः उपयोग कर भारतीय आचारदर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि का पूरा ध्यान रखते हुए प्रामाणिकता के साथ गंभीर तथ्यो को उजागर किया है। यही उनके ग्रन्थ की विशेषता है। प्रोफेसर जगन्नाथ उपाध्याय भूतपूर्व सकायाध्यक्ष, श्रमणविद्या संकाय, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी यह अध्ययन विद्वत्तापूर्ण, गम्भीर एवं विचारोत्पादक है। इसी के साथ हो अत्यन्त सरल एवं सुबोध है / जैन दर्शन तथा परम्परा में गम्भीर आस्था रखते हुए लेखक ने बौद्ध और भगवद्गीता के आचार-दर्शनों के प्रतिपादन में पूरी उदारता तथा निष्पक्ष दृष्टिकोण का परिचय दिया है / तुलनात्मक अध्ययन के क्षेत्र में इस दृष्टि से लेखक का यह प्रयास अत्यन्त स्तुत्य तथा अनुकरणीय है। डा० रामशंकर मिश्र प्रोफेसर एवं अध्यक्ष दर्शन विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी प्रस्तुत ग्रन्थ दर्शनशास्त्र के उन स्नातकोत्तर विद्यार्थियों, शोध छात्रों, विद्वानों एव जिज्ञासुओं के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होगा, जो भारतीय आचार-दर्शन का अध्ययन करते या उसमें रुति रखते हैं। इस प्रकार के उच्चस्तरीय शोध पर आधारित प्रामाणिक ग्रन्थ का प्रणयन कर डा० सागरमल जैन ने भारतीय आचार-दर्शन के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। डा० रघुनाथ गिरि प्रोफेसर एवं अध्यक्ष दर्शन विभाग काशी विद्यापीठ, वाराणसी Education Interational For Private & Perspral se Only www.jainelibrary.org