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________________ समत्वयोग (४) समाज और समाज का संघर्ष-जब व्यक्ति सामान्य हितों और सामान्य वैचारिक विश्वासों के आधार पर समूह या गुट बनाता है तो सामाजिक संघर्षों का उदय होता है । इसका आधार आर्थिक और वैचारिक दोनों ही हो सकता है । समत्वयोग का व्यवहार पक्ष और जैन दृष्टि जैसा कि हमने पूर्व में देखा कि इन समग्र संघर्षों का मूल हेतु आसक्ति, आग्रह और संग्रह वृत्ति में निहित है। अतः जैन दार्शनिकों ने उनके निराकरण के हेतु अनासक्ति, अनाग्रह, अहिंसा तथा असंग्रह के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया । वस्तुतः व्यावहारिक दृष्टि से चित्तवृत्ति का समत्व, अनासक्ति या वीतरागता में, बुद्धि का समत्व अनाग्रह या अनेकान्त में और आचरण का समत्व अहिंसा एवं अपरिग्रह में निहित है। अनासक्ति, अनेकान्त, अहिंसा और अपरिग्रह के सिद्धान्त ही जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना के चार आधार स्तम्भ हैं । जैन-दर्शन के समत्वयोग की साधना को व्यावहारिक दृष्टि से निम्न प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता हैसमत्वयोग के निष्ठासूत्र (अ) संघर्ष के निराकरण का प्रयत्न ही जीवन के विकास का सच्चा अर्थ~समत्वयोग का पहला सूत्र है संघर्ष नहीं, संघर्ष या तनाव को समाप्त करना ही वैयक्तिक एवं सामाजिक जीवन को प्रगति का सच्चा स्वरूप है। अस्तित्व के लिए संघर्ष के स्थान पर जैन-दर्शन संघर्ष के निराकरण में अस्तित्व का सूत्र प्रस्तुत करता है। जीवन संघर्ष में नहीं वरन् उसके निराकरण में है। जैन-दर्शन न तो इस सिद्धान्त में आस्था रखता है कि जीवन के लिए संघर्ष आवश्यक है और न यह मानता है कि "जीओ और जीने दो" का नारा ही पर्याप्त है। उसका सिद्धान्त है जीवन के लिए जीवन का विनाश नहीं, वरन् जीवन के द्वारा जीवन का विकास या कल्याण (परस्परोपग्रहो जीवानाम्-तत्त्वार्थसूत्र) जीवन का नियम संघर्ष का नियम नहीं वरन् परस्पर सहकार का नियम है । (ब) सभी मनुष्यों को मौलिक समानता पर आस्था :-आत्मा की दृष्टि से सभी प्राणी समान हैं, यह जैनदर्शन की प्रमुख मान्यता है । इसके साथ ही जैन आचार्यों ने मानव जाति की एकता को भी स्वीकार किया है। वर्ण, जाति, सम्प्रदाय और आर्थिक आधारों पर मनुष्यों में भेद करना मनुष्यों को मौलिक समता को दृष्टि से ओझल करना है । सभी मनुष्य, मनुष्य-समाज में समान अधिकारों से युक्त हैं। यह निष्ठा साम्ययोग के सामाजिक सन्दर्भ का आवश्यक अंग है । इसके मूल में सभी मनुष्यों को समान अधिकार से युक्त समझने की धारणा रही हुई है । यह सामाजिक न्याय का आधार है जो सामाजिक संघर्ष को समाप्त करता है । समत्वयोग के क्रियान्वयन के चार सूत्र (१) वृत्ति में अनासक्ति :-अनासक्त जीवन-दृष्टि का निर्माण यह समत्वयोग की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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