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उपसंहार
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उच्च के लिए; लेकिन उच्च के होने में ही वह सार्थक है । ताकि वह जी सके और जीवन के
मनुष्य को रोटी या भौतिक सत्य और सौन्दर्य की भूख
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वस्तुओं की जरूरत है, को भी तृप्त कर सके रोटी, रोटी से भी बड़ी भूखों के लिए आवश्यक है । लेकिन यदि कोई बड़ी भूख नहीं है, तो रोटी व्यर्थ हो जाती है। रोटी, रोटी के ही लिए नहीं है । अपने आप में उसका कोई मूल्य और अर्थ नहीं है । उसका अर्थ हैं उसके अतिक्रमण में । कोई जीवन-मूल्य जो कि उसके पार निकल जाता है, उसमें ही उसका अर्थ है ।'
वस्तुतः हमने भौतिक मूल्यों की पूर्ति को ही अन्तिम मानकर बहुत बड़ी गलती की है । भौतिक पूर्ति अन्तिम नहीं है, यदि वही अन्तिम होती तो आज मनुष्य में उच्च मूल्यों का विकास पहले की अपेक्षा अधिक होना चाहिए था, क्योंकि वर्तमान युग में हमारी भौतिक सुख-सुविधाएँ पहले की अपेक्षा अधिक बढ़ी हैं, फिर भी उच्च मूल्यों का विकास उस परिमाण में नहीं हो पाया है । आर्थिक विकास और व्यवस्था होने पर भी आज का सम्पन्न मनुष्य उतना ही अर्थ-लोलुप है जितना पहले था । वैज्ञानिक विकास अपने चरम शिखर पर है, फिर भी आज का विज्ञानजीवी मनुष्य उतना ही आक्रामक है, जितना पहले था । शिक्षा का स्तर बहुत ऊँचा होने पर भी आज का शिक्षित मनुष्य उतना ही स्वार्थी है, जितना पहले था । आर्थिक, वैज्ञानिक और शैक्षणिक विकास ने मनुष्य के व्यवहार को बदला है, पर उसी को बदला है, जो उनसे सम्बन्धित है । मनुष्य में ऐसी अनेक मूल प्रवृत्तियाँ हैं, जिन्हें ये नहीं बदल सकते हैं । क्रोध, अभिमान, कपट, लोभ, भय, शोक, घृणा, काम-वासना, कलह ये मनुष्य की मूल प्रवृत्तियाँ हैं । आर्थिक अभाव तथा अज्ञान के कारण जो सामाजिक दोष उत्पन्न होते हैं, वे आर्थिक और शैक्षणिक विकास से मिट जाते हैं किन्तु मूल प्रवृत्तियों से उत्पन्न दोष उनसे नहीं मिटते । मूल प्रवृत्तियों का नियन्त्रण या शोधन आध्यात्मिकता से ही हो सकता है, इस लिए समाज में उसका अस्तित्व अनिवार्य है ।
जो विचारक यह मानते हैं कि आधुनिक विज्ञान की सहायता से मनुष्य की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति कर दी जायेगी और इस प्रकार इस संसार में एक स्वर्ग का अवतरण हो सकेगा, वे वस्तुतः भ्रान्ति में हैं । वस्तुतः मनुष्य के लिए जिस आनन्द और शान्तिमय जीवन की अपेक्षा है, वह मात्र भोगों की पूर्ति में विकसित नहीं हो सकता जिन्हें सन्तुष्टि के अल्प साधन उपलब्ध हैं, वे अधिक आनन्दित हैं, अपेक्षाकृत उनके जो भौतिक सुख सुविधाओं की विपुलता के बावजूद उतने आनन्दित नहीं हैं । आज अमेरिका भौतिक सुख-सुविधाओं की दृष्टि से सम्पन्न है, पर उसके नागरिक मानसिक तनावों से सर्वाधिक पीड़ित हैं । आज का मानव जिस भयावह एवं तनावपूर्ण स्थिति
१. नये संकेत, पृ० ५७ ।
३. दी कान्सेप्ट आफ मारल्स, पृ० १४३ ।
२. नैतिकता का गुरुत्वाकर्षण, पृ० २५ ।
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