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जैन आचार के सामान्य नियम
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ग्रहण किया जा सकता है । सामान्य संथारा तीन प्रकार का है-( अ ) भक्त-प्रत्याख्यान-आहार आदि का त्याग कर देना ( ब ) इंगितमरण-एक निश्चित भू-भाग पर हलन-चलन आदि शारीरिक क्रियाएँ करते हुए आहार आदि का त्याग करना, ( स ) पादोपगमन-आहार आदि के त्याग के साथ-साथ शारीरिक क्रियाओं का निरोध करते हुए मृत्युपर्यन्त निश्चल रूप से लकड़ी के तख्ते के समान स्थिर पड़े रहना । उपर्युक्त सभी प्रकार के समाधि-मरणों में मन का समभाव में स्थित होना अनिवार्य है । समाधि-मरण ग्रहण करने की विधि
जैनागमों में समाधि-मरण ग्रहण करने की विधि भी बतायी गयी है । सर्वप्रथम मलमूत्रादि अशुचि विसर्जन के स्थान का अवलोकन कर नरम तृणों की शय्या तैयार कर ली जाती है। तत्पश्चात् सिद्ध, अरहन्त और धर्माचार्यों को विनयपूर्वक नमस्कार कर पूर्वग्रहीत प्रतिज्ञाओं में लगे हुए दोषों की आलोचना और उनका प्रायश्चित्त ग्रहण किया जाता है । इसके बाद समस्त प्राणियों से क्षमा याचना की जाती है और अन्त में अठारह पापस्थानों, अन्नादि चतुर्विध आहारों का त्याग करके शरीर के ममत्व एवं पोषणक्रिया का विसर्जन किया जाता है । साधक प्रतिज्ञा करता है कि मैं पूर्णतः हिंसा, झूठ, चोरी, अब्रह्म, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ यावत् मिथ्यादर्शन शल्य से विरत होता हूँ, अन्न आदि चारों प्रकार के आहार का यावज्जीवन के लिए त्याग करता हूँ। मेरा यह शरीर, जो मुझे अत्यन्त प्रिय था, मैंने इसकी बहुत रक्षा की थी, कृपण के धन के समान इसे संभालता रहा था, इस पर मेरा पूर्ण विश्वास था (कि यह मुझे कभी नहीं छोड़ेगा), इसके समान मुझे अन्य कोई प्रिय नहीं था, इसलिए मैंने इसे शीत, गर्मी, क्षुधा, तृषा आदि अनेक कष्टों से एवं विविध रोगों से बचाया और सावधानीपूर्वक इसकी रक्षा करता रहा, अब मैं इस देह का विसर्जन करता हूँ और इसके पोषण एवं रक्षण के प्रयासों का परित्याग करता हूँ।' बौद्ध-परम्परा में मृत्यु-वरण
__ यद्यपि बुद्ध ने जैन-परम्परा के समान ही धार्मिक आत्महत्याओं को अनुचित माना है, तथापि बौद्ध-वाङ्मय में कुछ ऐसे सन्दर्भ अवश्य हैं जो स्वेच्छापूर्वक मृत्यु-वरण का समर्थन करते हैं । संयुत्तनिकाय में असाध्य रोग से पीड़ित भिक्षु वक्कलि कुलपुत्र तथा भिक्षु छन्न' द्वारा की गयी आत्महत्या का समर्थन बुद्ध ने किया था और उन्हें निर्दोष कहकर दोनों ही भिक्षुओं को परिनिर्वाण प्राप्त करनेवाला बताया था। जापानी बौद्धों में तो आज भी 'हरीकरी' की प्रथा मृत्यु-वरण की सूचक है।
२. संयुत्तनिकाय, २११२।४।५, ।
. १ प्रतिक्रमणसूत्र-संलेखना पाठ ।
३. वही, ३४।२।४।४ ।
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