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________________ धमण-धर्म ही नहीं, उसे चौदह प्रकार के आभ्यन्तरिक परिग्रह का भी त्याग करना होता है, जैसे- १. मिथ्यात्व, २. हास्य, ३. रति, ४. अरति, ५. भय, ६. शोक, ७. जुगुप्सा, ८. स्त्रीवेद, ९. पुरुषवेद, १०. नपुंसकवेद, ११. क्रोध, १२. मान, १३. माया और १४. लोभ ।' ___ यद्यपि श्रमण के लिए सभी प्रकार का आभ्यन्तर एवं बाह्य परिग्रह त्याज्य है तथापि भिक्षु जीवन की आवश्यकताओं की दृष्टि से श्रमण को कुछ वस्तुएँ रखने की अनुमति है । बाह्य परिग्रह की दृष्टि से श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्पराओं में किंचित मतभेद है। दिगम्बर परम्परा के अनुसार श्रमण की आवश्यक वस्तुओं (उपधि) को ३ भागों में बाँटा जा सकता है। १. ज्ञानोपधि (शास्त्र-पुस्तक आदि), २. संयमोपधि (मोर के परों से बनी पिच्छि), ३. शौचौपधि (शरीर-शुद्धि के लिए जल ग्रहण करने का पात्र या कमण्डलु)२ । दिगम्बर परम्परा के अनुसार मुनि को वस्त्र आदि अन्य सामग्री के रखने का निषेध है। श्वेताम्बर परम्परा के मूल आगमों के अनुसार भिक्षु चार प्रकार की वस्तुएँ रख सकता है-१. वस्त्र, २. पात्र, ३. कम्बल और ४ रजोहरण ।3 आचारांगसूत्र के अनुसार स्वस्थ मुनि एक वस्त्र रख सकता है, साध्वियों को चार वस्त्र रखने का विधान है। इसी प्रकार मुनि एक से अधिक पात्र नहीं रख सकता। आचारांग में मुनि के वस्त्रों के नाप के सन्दर्भ में कोई स्पष्ट वर्णन नहीं है, यद्यपि साध्वी के लिए चार वस्त्रों में एक दो हाथ का, दो तीन हाथ के और एक चार हाथ का होना चाहिए । प्रश्नव्याकरणसूत्र में मुनि के लिए चौदह प्रकार के उपकरणों का विधान है-१. पात्रजो कि लकड़ी, मिट्टी अथवा तुम्बी का हो सकता है, २. पात्रबन्ध-पात्रों को बाँधने का कपड़ा, ३. पात्र स्थापना-पात्र रखने का कपड़ा, ४. पात्र केसरिका-पात्र पोछने का कपड़ा, ५. पटल-पात्र ढंकने का कपड़ा, ६. रजस्त्राण, ७. गोच्छक, ८-१० प्रच्छादक ओढ़ने को चादर, मुनि विभिन्न नापों की ३ चादरें रख सकता है इसलिये ये तीन उपकरण माने गये हैं, ११. रजोहरण, १२. मुखवस्त्रिका, १३. मात्रक और १४. चोलपट्ट। ये १४ वस्तुएं रखना श्वेताम्बर मुनि के आवश्यक है, क्योंकि इनके अभाव १. बृहद्कल्प, १३८३१ देखिए बोलसंग्रह, भाग ५, पृ० ३३ । २. मूलाचार, १।१४ । ३. आचारांग, १।२।५।९० । ४. देखिए-आचारांग, २।५।१।१४१, २।६।१।१५२ । ५. देखिए-बोल संग्रह, भाग ५, पृ० २८-२९, प्रश्नव्याकरण, १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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