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________________ जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन ५. भोजन-पानी का निरोध - अधीनस्थ पशुओं एवं कर्मचारियों अथवा पारिवारिक जनों को समय पर एवं आवश्यक मात्रा में भोजन, पानी आदि जीवन की आवश्यक वस्तुएँ नहीं देना भी अहिंसाव्रती गृहस्थ के लिए नैतिक अपराध है । २. सत्य-अणुव्रत स्थूल असत्य से विरति जैन गृहस्थ का सत्याणुव्रत है । गृहस्थ साधक असत्य से विरत होने के हेतु प्रतिज्ञा करता है कि "मैं स्थूल मृषावाद का यावत् जीवन के लिए मन, वचन, और काय से त्याग करता हूं, मैं न स्वयं मृषा (असत्य) भाषण करूँगा, न अन्य से कराऊँगा" प्रस्तुत प्रतिज्ञा में स्थूल मृषावाद का त्याग गृहस्थ साधक से अपेक्षित है, लेकिन स्थूल मृषावाद या बड़ी झूठ किसे कहना यह निश्चित करना कठिन है | श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र में सत्याणुव्रत की प्रतिज्ञा में जो संकेत मिलता है, उसके आधार पर स्थूल असत्य का कुछ स्वरूप सामने आ जाता है । वहाँ पर निम्न पाँच स्थूल असत्य निरूपित हैं २७८ १. वर-कन्या के सम्बन्ध में झूठी जानकारी देना । २. गो आदि पशुओं के सम्बन्ध में झूठी जानकारी देना या असत्य भाषण करना । ३. भूमि के सम्बन्ध में असत्य भाषण करना । ४. किसी की अमानत ( धरोहर ) को दबाने के लिए झूठ बोलना । ५. झूठी साक्षी देना । आचार्य हेमचन्द्र ने भी अपने योगशास्त्र में इन्हीं पाँच बातों को यथाक्रम (१) कन्या लीक, (२) गो- अलीक, (३) भूमि- अलीक, (४) न्यासापहार और ( ५ ) कूट - साक्षी ऐसे पाँच स्थूल असत्य बताये हैं । ये सभी लोक विरुद्ध हैं, विश्वासघात के जनक हैं और पुण्य नाशक हैं, अतः श्रावक को स्थूल असत्य से बचना चाहिए 13 स्थूल मृषावाद की व्यापक परिभाषा के विषय में मुनि सुशीलकुमारजी लिखते हैं, " यद्यपि स्थूल असत्य और सूक्ष्म असत्य की कोई निश्चित परिभाषा देना कठिन है, तथापि जिस असत्य को दुनिया असत्य मानती है, जिस असत्य भाषण से मनुष्य झूठा कहलाता है, जो लोक निन्दनीय और राज दण्डनीय है, वह असत्य स्थूल असत्य है, श्रावक ऐसे स्थूल असत्य भाषण का त्याग करता है। झूठी साक्षी देना, झूठा दस्तावेज लिखना, किसी की गुप्त बात प्रकट करना, चुगली करना, गलत रास्ते पर ले जाना, आत्मप्रशंसा और परनिन्दा करना आदि स्थूल मृषावाद में सम्मिलित है । ४ १. उपासकदशांग १।१४ । ३. योगशास्त्र २५४-५५ । Jain Education International २. श्रावकप्रतिक्रमण, दूसरा अणुव्रत । ४. जैनधर्म, पृ० १८७ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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