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________________ जैन, बौद्ध और गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन पहलू हमारे लिए आवृत बने रहते हैं । अतः दूसरों के विचार एवं ज्ञान में भी सत्यता सम्भव है, यह बात स्वीकार करनी होगी। २. सत्यान्वेषण आग्रहबुद्धि के द्वारा सम्भव नहीं है । अनाग्रही दृष्टि हो सत्य को प्रदान कर सकती है। ३. राग-द्वेषजन्य संस्कारों से ऊपर उठकर 'मेरा सो सच्चा' के स्थान पर 'सच्चा सो मेरा' यह दृष्टि रखना चाहिए। सत्य चाहे अपने पास हो या विरोधी के पास, उसे स्वीकार करने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए । ४. जब तक हम राग-द्वेष के संस्कारों से अपने को ऊपर नहीं उठा सकें और पूर्णता को नहीं प्राप्त कर सकें तब तक केवल सत्य के प्रति जिज्ञासा रखना चाहिए । सत्य अपना या पराया नहीं होता है। ५. अपने विचार पक्ष के प्रति भी विपक्ष के समान तीव्र समालोचक दृष्टि रखना चाहिए। ६. विपक्ष के सत्य को उसी के दृष्टिकोण के आधार पर समझने का प्रयास करना चाहिए। ७. अनुभव या ज्ञान की वृद्धि के साथ यदि नये सत्यों का प्रकटन हो तथा पूर्व ग्रहीत विचार असत्य प्रतीत हों तो आग्रहबुद्धि का त्याग कर नये विचारों को स्वीकार करना चाहिए और पुरानी मान्यताओं को तदनुरूप संशोधित करना चाहिए। ८. विरोध को स्थिति में प्रज्ञापूर्वक समन्वय के सूत्र खोजने का प्रयास करना चाहिए। ९. दूसरों के विचारों के प्रति सहिष्णु दृष्टिकोण रखना चाहिए, क्योंकि उनके विचारों में भी सत्यता की सम्भावना निहित है । अनासक्ति (अपरिग्रह) अहिंसा और अनाग्रह के बाद जैन आचारदर्शन का तीसरा प्रमुख सिद्धान्त अनासक्ति है। अहिंसा, अनाग्रह और अनासक्ति इन तीन तत्त्वों के आधार पर ही जैन आचारदर्शन का भव्य महल खड़ा है। यही अनासक्ति सामाजिक नैतिकता के क्षेत्र में अपरिग्रह बन जाती है । जैन धर्म में अनासक्ति ___ जैन आचारदर्शन में जिन पाँच महाव्रतों का विवेचन है, उनमें से तीन महाव्रत अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह अनासक्ति के ही व्यावहारिक रूप हैं । व्यक्ति के अन्दर निहित आसक्ति दो रूपों में प्रकट होती है-१. संग्रह-भावना और २. भोग-भावना । संग्रह-भावना और भोग-भावना से प्रेरित होकर ही मनुष्य दूसरों के अधिकार की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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