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________________ २३२ जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन वृथा है ।'' एक सच्चा जैन सभी धर्मों एवं दर्शनों के प्रति सहिष्णु होता है । वह सभी में सत्य का दर्शन करता है । परमयोगी जैन सन्त आनन्दघनजी लिखते हैं षट् दरसण जिन अंग भणीजे, न्याय षडंग जो साधे रे, नमि जिनवरना चरण उपासक, षटदर्शन आराधे रे । राजनैतिक सहिष्णुता ___ आज का राजनैतिक जगत् भी वैचारिक संकुलता से परिपूर्ण है । पूँजीवाद, समाजवाद, साम्यवाद, फासिस्टवाद, नाजीवाद आदि अनेक राजनैतिक विचारधाराएँ तथा राजतन्त्र, प्रजातन्त्र, कुलतन्त्र, अधिनायकतन्त्र आदि अनेकानेक शासन प्रणालियां वर्तमान में प्रचलित हैं । मात्र इतना ही नहीं, उनमें से प्रत्येक एकदूसरे की समाप्ति के लिए प्रयत्नशील है । विश्व के राष्ट्र खेमों में बँटे हुए हैं और प्रत्येक खेमे का अग्रणी राष्ट्र अपना प्रभाव-क्षेत्र बढ़ाने के हेतु दूसरे के विनाश में तत्पर है। मुख्य बात यह है कि आज का राजनैतिक संघर्ष आर्थिक हितों का संघर्ष न होकर वैचारिकता का संघर्ष है । आज अमेरिका और रूस अपनी वैचारिक प्रमुखता के प्रभाव-क्षेत्र को बढ़ाने के लिए ही प्रतिस्पर्धा में लगे हुए हैं । एकदूसरे को नामशेष करने की उनकी यह महत्त्वाकांक्षा कहों मानव-जाति को हो नामशेष न कर दे । आज के राजनैतिक जीवन में अनेकान्त के दो व्यावहारिक फलित-वैचारिक सहिष्णुता और समन्वय-अत्यन्त उपादेय हैं । मानव-जाति ने राजनैतिक जगत् में राजतन्त्र से प्रजातन्त्र तक की जो लम्बी यात्रा तय की है उसकी सार्थकता अनेकान्त दृष्टि को अपनाने में ही है । विरोधी पक्ष के द्वारा की जाने वाली आलोचना के प्रति सहिष्णु होकर, उसके द्वारा अपने दोषों को समझना और उन्हें दूर करने का प्रयास करना, आज के राजनैतिक जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विपक्ष की धारणाओं में भी सत्यता हो सकती है और सबल विरोधी दल की उपस्थिति से हमें अपने दोषों के निराकरण का अच्छा अवसर मिलता है-इस विचार-दृष्टि और सहिष्णु भावना में ही प्रजातन्त्र का भविष्य उज्ज्वल रह सकता है। राजनैतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातन्त्र (पार्लियामेन्टरी डेमोक्रेसी) वस्तुतः राजनैतिक अनेकान्तवाद है । इस परम्परा में बहुमत दल द्वाग गठित सरकार अल्पमत दल को अपने विचार प्रस्तुत करने का अधिकार मान्य करती है और यथासम्भव उससे लाभ भी उठाती है। दार्शनिक क्षेत्र में जहाँ भारत अनेकान्तवाद का सर्जक है, वहीं वह राजनैतिक क्षेत्र में संसदीय प्रजातन्त्र का समर्थक भी है । अतः आज अनेकान्त का व्यावहारिक क्षेत्र में उपयोग करने का दायित्व भारतीय राजनीतिज्ञों पर है। १. अध्यात्मसार, ६९-७३. २. उत्तराध्ययनसूत्र, ३२।८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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