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________________ १३४ जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन बौद्ध-दृष्टिकोण-बौद्ध-परम्परा में वैराग्यवाद और भोगवाद में समन्वय खोजा गया है । बुद्ध मध्यममार्ग के द्वारा इसी समन्वय के सूत्र को प्रस्तुत करते हैं । अंगुत्तर-निकाय में कहा है, 'भिक्षुओं, तीन मार्ग हैं:-१ शिथिल मार्ग,२ कठोर मार्ग और ३ मध्यम मार्ग। भिक्षुओं, किसी-किसी का ऐसा मत होता है, ऐसी दृष्टि होती है-काम-भोगों में दोष नहीं है। वह काम-भोगोंमें जा पड़ता है। भिक्षओं, यह शिथिल मार्ग कहलाता है। भिक्षुओं, कठोर मार्ग कौनसा है ? भिक्षुओं, कोई-कोई नग्न होता है, वह न मछली खाता है, न मांस खाता है, न सुरा पीता है, न मेरय पीता है, न चावल का पानी पीता है। वह या तो एक ही घर से लेकर खानेवाला होता है या एक ही कौर खाने वाला; दो घरों से लेकर खाने वाला होता है या दो ही कौर खाने वाला सात घरों से लेकर खाने वाला होता है या सात कौर खाने वाला । वह दिन में एक बार भी खाने वाला होता है, दो दिन में एक बार भी खाने वाला होता है "सात दिन में एक बार भी खाने वाला होता है, इस प्रकार वह पन्द्रह दिन में एक बार खाकर भी रहता है। भात खाने वाला भी होता है, आचाम खाने वाला भी होता है, खली खानेवाला भी होता है, तिनके (घास) खाने वाला भी होता है, गोबर खानेवाला भी होता है, जंगल के पेड़ों से गिरे फल-मूल खाने वाला भी होता है । वह सन के कपड़े भी धारण करता है, कुश का बना वस्त्र भी पहनता है. छाल का वस्त्र भी पहनता है, फलक (छाल) का वस्त्र भी पहनता है, केशों से बना कम्बल भी पहनता है, पूँछ के बालों का बना कम्बल भी पहनता है, उल्लू के परों का बना वस्त्र भी पहनता है। वह केश-दाढ़ी का लुचन करनेवाला भी होता है। वह बैठने का त्याग कर निरन्तर खड़ा ही रहने वाला भी होता है। वह उकडूं बैठ कर प्रयत्न करनेवाला भी होता है, वह काँटों की शैय्या पर सोनेवाला भी होता है। प्रातः, मध्याह्न, सायं-दिन में तीन बार पानी में जानेवाला होता है। इस तरह वह नाना प्रकार से शरीर को कष्ट या पीड़ा पहुँचाता हुआ विहार करता है । भिक्षुओं, यह कठोर मार्ग कहलाता है । भिक्षुओं, मध्यममार्ग कौनसा है ? भिक्षुओं, भिक्षु शरीर के प्रति जागरूक रहकर विचरता है । वह प्रयत्नशील, ज्ञानयुक्त, स्मृतिमान हो, लोक में जो लोभ, वैर, दौर्मनस्य है, उसे हटाकर विहरता है, वेदनाओं के प्रति चित्त के प्रति धर्मों के प्रति जागरूक रहकर विचरता है। वह प्रयत्न-शील, ज्ञान-युक्त, स्मृति-मान हो लोक में जो लोभ और दौर्मनस्य है उसे हटाकर विहरता है । भिक्षुओं, यह मध्यममार्ग कहलाता है । भिक्षुओं, ये तीन मार्ग हैं।' बुद्ध कठोरमार्ग (देह-दण्डन) और शिथिलमार्ग (भोगवाद) दोनों को ही अस्वीकार करते हैं । बुद्ध के अनुसार यथार्थ नैतिक जीवन का मार्ग मध्यम मार्ग है। उदान में भी बुद्ध अपने इसी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हुए कहते हैं, 'ब्रह्मचर्य (संन्यास) के साथ व्रतों का पालन १. अंगुत्तरनिकाय, ३।१५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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