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जैन, बौद्ध तथा गीता के आचारवर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन अकुशल धर्मों को तपा डालना है । इस सन्दर्भ में बुद्ध और निर्ग्रन्थ उपासक सिंह सेनापति का सम्वाद पर्याप्त प्रकाश डालता है। बुद्ध कहते हैं "हे सिंह, एक पर्याय ऐसा है जिससे सत्यवादी मनुष्य मुझे तपस्वी कह सके।" वह पर्याय कौनसा है ? हे सिंह, मैं कहता हूँ कि पापकारक अकुशल धर्मों को तपा डाला जाय । जिसके पापकारक अकुशल धर्म गल गये, नष्ट हो गये, फिर उत्पन्न नहीं होते, उसे मैं तपस्वी कहता हूँ।'४ इस प्रकार बौद्ध साधना में भी जैन-साधना के समान आत्मा की अकुशल चित्तवृत्तियों या पाप वासनाओं के क्षीण करने के लिए तप स्वीकृत रहा है । जैन-साधना में तप का वर्गीकरण
जैन आचार-प्रणाली में तप के बाह्य (शारीरिक) और आभ्यन्तर (मानसिक) ऐसे दो भेद हैं ।' इन दोनों के भी छह-छह भेद हैं । (१) बाह्य तप-१. अनशन, २. ऊनोदरी, ३. भिक्षाचर्या, ४. रस-परित्याग
५. कायक्लेश और ६. संलीनता। (२) आभ्यन्तर तप-१. प्रायश्चित्त, २. विनय, ३. वैयावृत्य, ४. स्वाध्याय,
५. ध्यान और ६. व्युत्सर्ग । शारीरिक या बाह्य तप के भेद
१. अनशन-आहार के त्याग को अनशन कहते हैं । यह दो प्रकार का है-एक निश्चित समयावधि के लिए किया हुआ आहार-त्याग, जो एक दिन से लगा कर छह मास तक का होता है। दूसरा जीवन-पर्यन्त के लिए किया हुआ आहार-त्याग । जीवनपर्यन्त के लिए आहार-त्याग की अनिवार्य शर्त यह है कि उस अवधि में मृत्यु की आकांक्षा नहीं होनी चाहिए । आचार्य पूज्यपाद के अनुसार आहार-त्याग का उद्देश्य आत्म-संयम, आसक्ति में कमी करना, ध्यान, ज्ञानार्जन और कर्मों की निर्जरा है, न कि सांसारिक उद्देश्यों की पूत्ति । अनशन में मात्र देह-दण्ड नहीं है, वरन् आध्यात्मिक गुणों की उपलब्धि का उद्देश्य निहित है । स्थानांग सूत्र में आहार ग्रहण करने के और आहार त्याग के छह-छह कारण बताये गये हैं। उसमें भूख की पीडा की निवृत्ति, सेवा, ईर्यापथ, संयमनिर्वाहार्थ, धर्मचिन्तार्थ और प्राणरक्षार्थ ही आहार 'ग्रहण' करने की अनुमति है ।
(२) ऊनोदरी (अवमौदर्य)-इस तप में आहार विषयक कुछ स्थितियाँ या शर्ते निश्चित की जाती हैं । इसके चार प्रकार हैं-१. आहार की मात्रा से कुछ कम खाना, यह द्रव्य-ऊनोदरी तप है। २. भिक्षा के लिए, आहार के लिए कोई स्थान निश्चित कर वहीं से मिली भिक्षा लेना, यह क्षेत्रऊनोदरी तप है। ३. किसी निश्चित समय पर ४. बुद्धलीलासारसंग्रह, पृ० २८०-२८१ १. उत्तराध्ययन ३०१७ २. वही, २०१८-२८
३. सर्वार्थसिद्धि, ९।१९
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