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________________ सम्यकचारित्र (शोल) परमात्मा के निकट पायेगा। 'सद्गुणों का सम्पादन और दुर्गुणों से बचाव' एक ऐसा तत्त्व है, जहाँ न केवल सभी भारतीय अपितु अधिकांश पाश्चात्त्य आचारदर्शन भी समस्वर हो उठते हैं । चाहे इनके विस्तार-क्षेत्र एवं प्राथमिकता के प्रश्न को लेकर उनमें मतभेद हो । उनमें विवाद इस बात पर नहीं है कि कौन सद्गुण है और कौन दुर्गुण है, अपितु विवाद इस बात पर है कि किस सद्गुण का किस सीमा तक पालन किया जावे और दो सद्गुणों के पालन में विरोध उपस्थित होने पर किसे प्राथमिकता दी जावे । उदाहरणार्थ 'अहिंसा सद्गुण है' यह सभी मानने हैं किन्तु अहिंसा का पालन किस सीमा तक किया जावे, इस प्रश्न पर मतभेद रखते हैं। इसी प्रकार न्याय्य ( जस्टिस ) और दयालुता दोनों को सभी ने सद्गुणों के रूप में स्वीकार किया गया है किन्तु जब न्याय्य और दयालुता में विरोध हो अर्थात् दोनों का एक साथ सम्पादन सम्भव न हो तो किसे प्रधानता दी जावे, इस प्रश्न पर मतभेद हो सकता है। फिर भी सद्गुणों का यथाशक्ति सम्पादन किया जावे इसे सभी स्वीकार करते हैं । वस्तुतः सम्यक्चारित्र या शील, मन, वचन और कर्म के माध्यम से वैयक्तिक और सामाजिक जीवन में समत्व की संस्थापन का प्रयास है, वह व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पक्षों में एक सांग सन्तुलन स्थापित कर उसके आन्तरिक संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में उठाया गया कदम है। इतना ही नहीं, वह व्यक्ति के सामाजिक पक्ष का भी संस्पर्श करता है। व्यक्ति और समाज के मध्य तथा समाज और समाज के मध्य होनेवाले संघर्षों की सम्भावनाओं के अवसरों को कम कर सामाजिक समत्व की संस्थापना भी सम्यक्चारित्र का लक्ष्य है। इन्हीं लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए जैन, बौद्ध और वैदिक परम्पराओं में गृहस्थ और श्रमण के आचारविषयक अनेक सामान्य और विशिष्ट नियमों या विधियों का प्रतिपादन किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001675
Book TitleJain Bauddh aur Gita ke Achar Darshano ka Tulnatmak Adhyayana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages562
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Philosophy
File Size10 MB
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